लग्न कुंडली से सम्बंधित कुछ बुनियादी योग (Janm Kundali mein paye jane wale Yog)
पिछले लेखों में, आपको लग्न कुंडली के मूल नियमों से परिचित कराया गया था। यदि आपने नहीं पढ़ा है, तो आप लग्न कुंडली की मूल अवधारणाओं को इस लेख में पढ़ सकते हैं।
हालाँकि, अंग्रेजी व्याकरण की तरह ही, लग्न कुंडली के लगभग हर मौलिक नियम के भी अपवाद होते हैं।
इस लेख में, हम ऐसे कुछ अपवादों के बारे में जानेंगे - जिन्हें अक्सर योग कहा जाता है।
कुण्डली के योग को योग साधना के साथ भ्रमित न करें। ज्योतिष/कुंडली में योग ग्रहों और राशियों के विशिष्ट संयोजन हैं, जो सामान्य नियमों के अपवाद के रूप में कार्य कर सकते हैं। ये व्यक्ति को अच्छे या बुरे परिणाम दे सकते हैं।
- राशि परिवर्तन योग
- विप्रीत राज योग
- सूर्य के साथ बैठे ग्रहों की स्थिति
- ग्रहों की युति
राशि परिवर्तन योग
यदि कोई ग्रह A, ग्रह B की राशि में बैठा हो, और बदले में ग्रह B, ग्रह A की राशि में बैठा हो, तो इस स्थिति को राशि परिवर्तन योग कहा जाता है।
इसका महत्व क्या है?
हम जानते हैं कि यदि कोई ग्रह अपने शत्रु ग्रह की राशि में बैठा हो, तो वह कुंडली के उस भाव को नुकसान पहुंचाता है। परन्तु, यदि दो शत्रु ग्रह एक-दूसरे की राशि में बैठे हों, तो वे एक-दूसरे के घर को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।
आप कल्पना कर सकते हैं, कि यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें एक व्यक्ति अपने दुश्मन के परिवार के सदस्य को बंदूक की नोक पर रखा हुआ है, जबकि दूसरा व्यक्ति भी ऐसा ही कर रहा है। यह गतिरोध की स्थिति है। दोनों में से कोई भी दूसरे को कोई नुकसान नहीं पहुँचा पायेगा।
उदाहरण के लिए, हम जानते हैं कि शुक्र और मंगल शत्रु ग्रह हैं। परन्तु, अगर वे एक-दूसरे की राशि में बैठे हैं तो जातक को कोई नुकसान नहीं होगा। जैसे की मान लीजिए, यदि शुक्र वृश्चिक राशि (जिसका स्वामी मंगल है) में बैठा हो, और मंगल तुला राशि (जिसका स्वामी शुक्र है) में बैठा हो।
विप्रीत राज योग
हम जानते हैं कि कुंडली के छठे, आठवें और बारहवें भाव को नकारात्मक भाव माना जाता है, क्योंकि ये हमारे जीवन के नकारात्मक और बुरे पहलुओं से संबंधित होते हैं।
परन्तु, यदि जो राशि इन घरों में मौजूद है, उसका स्वामी ग्रह भी इनमें से किसी एक घर में बैठा है, तो यह बुरा परिणाम नहीं देगा। इसे विप्रीत राजयोग कहते हैं।
उदाहरण के लिए, यदि वृश्चिक राशि अष्टम भाव में हो तो मंगल (जो वृश्चिक राशि का स्वामी है) को अशुभ फल देना चाहिए, क्योंकि अष्टम भाव नकारात्मक होता है। परन्तु, यदि उस कुण्डली में मंगल छठे, आठवें या बारहवें भाव में से किसी एक में बैठा हो, तो वृश्चिक राशि के जातक अष्टम भाव से संबंधित खराब परिणाम नहीं भोगेंगे. बल्कि उस व्यक्ति के जीवन में मंगल की महादशा आने पर यह अच्छे परिणाम देगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि यहां विप्रीत राज योग बना है।
अत: संक्षेप में कहें तो, यदि कुण्डली के खराब भाव का स्वामी किसी खराब भाव में बैठा है तो वह नकारात्मक परिणाम नहीं देगा, कोई नुकसान नहीं करेगा। बल्कि, यह अच्छे परिणाम देगा (जब उस ग्रह की महादशा आएगी)।
लेकिन इसकी दो अतिरिक्त शर्तें हैं:
- लग्नेश शक्तिशाली होना चाहिए, अर्थात उसकी डिग्री अच्छी होनी चाहिए।
- लग्नेश को नकारात्मक भाव (अर्थात 6, 8, 12 या 3 में भी) में नहीं बैठा हुआ होना चाहिए।
यदि किसी की कुंडली में ये शर्तें पूरी नहीं होती हैं, तो विप्रीत राज योग नहीं बनेगा।
राहु और केतु विप्रीत राज योग नहीं बना सकते, क्योंकि वे किसी राशि के स्वामी नहीं हैं। इसलिए यदि वे कुंडली के 6वें, 8वें या 12वें भाव में बैठे हैं, तो निश्चित रूप से वे बुरे परिणाम देंगे।
कुंडली के पहले घर में जो राशि होती है, उसका मालिक गृह लग्नेश कहलाता है|
सूर्य के साथ बैठे ग्रहों की स्थिति
हमें सूर्य के साथ बैठे ग्रहों की स्थिति को भी करीब से देखने की जरूरत है - यानी वे अस्त हो रहे हैं या नहीं।
यदि कोई ग्रह उसी घर में बैठा हो जिसमें सूर्य बैठा है, और वह ग्रह अस्त हो रहा हो, तो वह आपको शुभ फल नहीं देगा, भले ही वह ग्रह आपके अनुकूल ही क्यों न हो।
ग्रहों की युति
यदि दो या दो से अधिक ग्रह एक ही भाव में बैठे हों, तो वे ग्रह युति में कहलाते हैं।
उदाहरण के लिए, निम्नलिखित कुंडली पर विचार करें:
यहां बुध, शुक्र और सूर्य दूसरे भाव में युति कर रहे हैं। इसी प्रकार चन्द्र, गुरु और केतु पंचम भाव में युति कर रहे हैं।
जिस ग्रह की महादशा या अंतर्दशा आएगी, वह ग्रह सक्रिय हो जाएगा। जो ग्रह सक्रिय है वह अपना फल देगा। यदि एक से अधिक ग्रह सक्रिय हैं, तो हमें उन ग्रहों का संयुक्त प्रभाव देखना होगा।
युति की अवधारणा की तरह, प्रतियुति की एक संबंधित अवधारणा भी है। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रत्येक ग्रह की दृष्टि अपने से सातवें भाव पर होती है (जिस घर में वह बैठा होता है, हम वहीँ से गिनना शुरू करते हैं)।
तो, कोई भी ग्रह उस ग्रह के साथ प्रतियुति बनाएगा जो उससे सातवें घर में बैठा है, यानी जहां वह अपनी दृष्टि रखता है।
उदाहरण के लिए, ऊपर दी गई कुंडली में, पंचम भाव में बैठे ग्रह (चंद्र, बृहस्पति, केतु), 11वें घर में बैठे ग्रह (राहु) के साथ प्रतियुति में होंगे।