post-thumb

ज़ेबरा पर एक निशान - सबसे भिन्न होना (लघु कथा)

आज हम आपके लिए एक ऐसी कहानी लेकर आ रहे हैं जो वास्तव में एक प्रयोग था, जिसको अफ्रीका में वैज्ञानिकों द्वारा किया गया था।

क्या आपने सोचा है कि ज़ेब्रा के शरीर पर धारियां क्यों होती हैं? यह निश्चित रूप से एक छलावरण तो नहीं लगता। जंगल हरा होता है, पर ज़ेबरा सफ़ेद और काला| यह तो ज़ेब्रा को जंगल की पृष्ठभूमि के सापेक्ष और भी अलग प्रतीत करवाता है, उसे छुपाने के बजाय उसे और भी साफ़-साफ़ दृष्टिगोचर करवाता है। फिर इसका उद्देश्य क्या है?

जहां तक ​​हम जानते हैं, प्रकृति में कुछ भी उद्देश्य के बिना नहीं होता है। यदि आप किसी जंगल सफारी पर गए हैं और ज़ेब्रा के झुंड को देखा है, तो आप शायद यह सब आसानी से समझ जाएंगे।

जेब्रा के झुंड में सिर्फ किसी एक ज़ेबरा का अवलोकन करने का प्रयास करें। आपको क्या लगता है, क्या यह आसान काम है?

झुंड में किसी एक विशेष ज़ेबरा का अवलोकन करने वाले वैज्ञानिकों ने ऐसा करना लगभग असंभव पाया। वो बहुत देर तक उस विशेष ज़ेबरा को देखते, पर जैसे ही वो कहीं और देखते और फिर वापस झुंड की तरफ देखते, तो वे उस विशेष ज़ेबरा का ढूंढने में खुद को असमर्थ पाते। सारे ज़ेबरा एकसे लगते हैं| लगता है कि झुंड में किसी एक विशेष ज़ेबरा को खो देना बहुत आसान है।

अब उन वैज्ञानिकों ने क्या किया? उन्होंने उस जेब्रा को लाल पेंट से चिह्नित कर दिया। इससे उस ज़ेबरा का अध्ययन करना उनके लिए आसान हो गया, लेकिन इसका एक आश्चर्यजनक दुष्परिणाम हुआ। उस ज़ेबरा का शेरों द्वारा शिकार कर लिया गया।

तब वैज्ञानिकों ने एक दूसरे ज़ेबरा का अध्ययन करने का फैसला किया, और इसलिए उसे भी लाल पेंट से चिह्नित किया। पर उस ज़ेबरा को भी शेरों ने मार दिया।

हमेशा ऐसा ही होने लगा। शेरों ने हमेशा लाल पेंट वाले ज़ेबरा को निशाना बनाया। इससे पता चलता है, कि समूह से अलग दिखने में खतरा होता है।

शेर हमेशा अपने शिकार पर हमला करने से पहले उसे चिह्नित करते हैं। लेकिन अगर झुंड के सभी जानवर एक जैसे दिखते हैं, तो यह शेरों के लिए कठिन हो जाता है। इसलिए, ज़ेब्रा जंगल के खिलाफ नहीं, बल्कि अपने झुंड के सापेक्ष अपने छलावरण का उपयोग करते हैं। यह उन्हें झुंड में मिश्रित होने में मदद करता है।

कई कहानियां और वास्तविक जीवन के प्रयोग हैं जो बताते हैं कि, एक समूह से अलग दिखना या बाहर होना एक बड़ा जोखिम माना जाता है, जिससे लोग (और जानवर) सामान्य रूप से बचने की कोशिश करते हैं। आपने इनमें से कुछ किस्से और कहानियां पहले पढ़े / सुने होंगे:

  • गुलाम मानसिकता - कुछ गरीब लोग अक्सर एक ऐसी मानसिकता विकसित कर लेते हैं जिससे उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति से बहुत जलन होती है जो उनमें से होने के बावजूद अपनी गरीबी से लड़ता है, उभरता है और सफल होता है।
  • बक्से में केकड़े - जब भी कोई केकड़ा बक्से से निकलने की कोशिश करता है, तो दूसरे उसे अंदर खींच लेते हैं।
  • समूह-पूर्वाग्रह (group-bias) की मनोवैज्ञानिक घटना - एक मनोवैज्ञानिक प्रयोग किया गया जहां कुछ लोगों को तीन समान लम्बाई की रेखाएं दिखाई गईं। लोगों को अध्ययन समूह के सदस्यों के रूप में एक-एक करके कमरे में भेजा गया। उनके साथ कुछ प्रयोगकर्ता भी सामान्य प्रतिभागी बनकर शामिल हो गए| सभी प्रयोगकर्ताओं ने कहा कि मध्य रेखा ज्यादा लंबी थी, जबकि ऐसा नहीं था। इससे लोगों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा। उनमें से अधिकांश सहमत हो गए कि मध्य रेखा वाकई अन्य दो लाइनों की तुलना में लंबी थी। इसे ही मनोविज्ञान में समूह-पूर्वाग्रह कहा जाता है। लोग बाकी लोगों या समाज के दबाव में आकर अपनी राय बदल देते हैं, चाहे वो अंदर से कुछ और सोचते हों|

हम इस कहानी/प्रयोग से क्या सबक या सीख ले सकते हैं?

इस प्रयोग से सीखने योग्य सबक

दूसरों से अलग दिखने के हमारे डर की जड़ें विकासवाद में हैं। जो लोग अथवा पशु औरों से अलग होते थे, या अलग रहते थे, वे अक्सर मारे गए, या उन्होंने काफी कष्ट सहे।

जो कोई भी बाकी लोगों से अलग कुछ करना चाहता है, उसे बाकी लोगों से अलग दिखने के अपने इस मौलिक डर से लड़ना और जीतना होता है।

अब, हमें सांप और शेर का सामना नहीं करना पड़ता। लेकिन अभी भी कई स्थितियों में हमारे अंदर उसी स्तर का डर उत्तपन्न होता है।

  • मंच भय (Stage Fright) - क्या आप जानते हैं कि मनुष्यों में सबसे सामान्यतः पाया जाने वाला भय क्या माना जाता है? यह किसी भीड़ के सामने बोलने का भय है। अंतर्निहित कारण वही पुराना है - भीड़ से अलग दिखने का डर।
  • क्या आप अपने मन की बात कहने से डरते हैं? शायद इसलिए कि आप आशंकित हैं कि आप ऐसा कुछ कहेंगे जिससे लोग सहमत नहीं होंगे, या ऐसा कुछ जो शर्मनाक है। आप एक विचित्र व्यक्ति के रूप में देखे जाएंगे, कोई ऐसा व्यक्ति जो अजीब है - जिस तरह से वह सोचता है, या जिस तरह से वह व्यवहार करता है।
  • क्या आप जोखिम लेने से डरते हैं, जीवन में कुछ नया करने में भयाक्रांत हो जाते हैं? बहुत से लोग अपने पेशे को नहीं छोड़ सकते, चाहे वो उसे करने में रूचि खो चुके हों, या अब उसमें उतना अच्छा पैसा ना कमा रहे हों। उनके पास अपने जुनून और पसंद का काम करने की हिम्मत नहीं है। क्यों? क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर वे असफल हो गए, तो उन्हें असफ़ल इंसान मान लिया जायेगा, उनका समाज से बहिष्कार हो जाएगा, वो किसी को क्या मुँह दिखाएंगे, इत्यादि|

इन सभी आशंकाओं का मूल कारण है - दूसरों से अलग दिखने का डर।

हालांकि, जानवरों या हमारे मानव पूर्वजों के विपरीत, औरों से अलग होना आधुनिक युग में एक अच्छी बात हो सकती है। इसे साबित करने के लिए हमारे पास बहुत सारे उदाहरण हैं।

  • कलाकार - आप एक सफल चित्रकार, लेखक, फिल्म निर्माता, संगीतकार आदि नहीं हो सकते, जब तक आप अपने दिल की नहीं सुनते और रचनात्मक दृष्टि नहीं रखते।
  • उद्यमी - एक सफल उद्यमी बनने के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटक ग्राहकों की समस्याओं को पहचानना और फिर उन्हें एक अभिनव समाधान प्रदान करना है। आपको औरों से अलग सोचना होता है, और कुछ ऐसा करना होता है जो आज तक ना किया गया हो|
  • वैज्ञानिक और दार्शनिक - मानव सभ्यता कभी भी विकसित नहीं हो सकती थी अगर हमारे वैज्ञानिक और दार्शनिक बाकी सब से अलग और गहराई में नहीं सोचते।

कई और पेशे हैं जिन्हें बहुत अधिक रचनात्मकता की आवश्यकता होती है। मानव सभ्यता को ऐसे लोगों की आवश्यकता है जो अजीब हों, जो लोग सामान्य लोगों से अलग सोचते हों और नवीन कार्य करते हों।

लेकिन अधिकांश रचनात्मक लोगों को समाज में सामंजस्य बैठाने में दिक्कत होती है। यदि आप अब तक इस लेख को पढ़ रहे हैं, तो यह संभावना काफी अधिक है कि आप ऐसे ही एक रचनात्मक इंसान हैं।

डॉक्टर या इंजीनियर बनना आसान है। लेकिन अपने माता-पिता को बताएं कि आप एक ब्लॉगर बनना चाहते हैं या एक व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं, तो संभवतः आपको इसमें शामिल जोखिमों पर लंबे व्याख्यान दिए जाएंगे - “वही शेरों द्वारा मारे जाने का डर दिखाया जायेगा”।

हम में से अधिकांश अभी भी झुंड के साथ रहना पसंद करते हैं, और जो आराम यह प्रदान करता है उसका आनंद लेते हैं। लेकिन आजकल काफी लोग, शायद मानव इतिहास में पहले से कहीं अधिक, अपने जुनून का पीछा कर रहे हैं, जीवन में अपना रास्ता स्वयं बना रहे हैं। हम उन्हें जोखिम लेने वाले व्यक्ति कहते हैं।

यह वही चीज़ है जो हम मनुष्यों को इस ग्रह पर सबसे सफल प्रजाति बनाती है - हमारे अंदर के भय को पार पाने की हमारी क्षमता।

शेरों का सामना करने की आदत डालें, अपने भीतर की आवाज और अपने दिमाग की सुनें और उसी हिसाब से काम करें। यकीन मानिए, आपकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल जाएगी। हम यह यकीन से नहीं कह सकते की आप आरामदायक या ख़ुश जीवन व्यतीत करेंगे, पर आप निश्चय ही एक उद्देश्यपूर्ण जीवन जिएंगे|

झुंड के बाकी सदस्यों को आपको यह ना बताने दें की आपको क्या सोचना चाहिए, क्या बोलना चाहिए, क्या लिखना चाहिए या आपको कैसे व्यवहार करना चाहिए। उनमें से कई आपको सलाह देने की कोशिश करेंगे, शायद आपको धमकाएं भी, ताकि आप झुंड के नियमों का पालन करें। संभवतः यही उन्होंने सीखा है - शेर और सांप से डरना।

किसी को यह मत बताने दीजिये कि आप क्या कर सकते हो या क्या नहीं कर सकते हो। जोखिम उठाएं और परिणामों का सामना करने के लिए पर्याप्त हिम्मत रखें। शायद आप दूसरों के अनुसरण योग्य एक नया मार्ग प्रशस्त कर पाएं।

हमें टिप्पणी अनुभाग में इस पर अपने विचार बताएं। आपके अनुसार हम इस प्रयोग/कहानी से सबसे महत्वपूर्ण सबक क्या ले सकते हैं?

Share on:
comments powered by Disqus