ज्योतिष में विभिन्न ग्रहों की प्रकृति (Kundali mein Grahon ki Prakriti)
इस लेख में, हम ज्योतिष में विभिन्न ग्रहों की प्रकृति को समझने की कोशिश करेंगे।
एक कुंडली में 9 मुख्य ग्रह होते हैं - सूर्य, चंद्रमा, राहु, केतु, बृहस्पति, शुक्र, मंगल, बुध और शनि।
- मंगल की प्रकृति
- शुक्र की प्रकृति
- बुध की प्रकृति
- चंद्रमा की प्रकृति
- सूर्य की प्रकृति
- बृहस्पति की प्रकृति
- शनि की प्रकृति
- राहु की प्रकृति
- केतु की प्रकृति
मंगल की प्रकृति
मंगल की प्रवृत्ति अलगाव की होती है, यानी वह दूसरों से अलग रहना पसंद करता है। यानी यह अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीना पसंद करता है।
इसलिए हम हमेशा कुंडली में मांगलिक दोष देखते हैं। और जोड़े बनाने के दौरान हम पसंद करते हैं कि या तो दोनों साथी मंगली हों, या दोनों गैर-मंगली हों। यह समझना आसान है। जो लोग समाज से अलग रहना पसंद करते हैं, वे समान प्रवृत्ति वाले व्यक्ति के साथ बेहतर तालमेल बिठा पाते हैं।
मंगल का अर्थ शरीर, रक्त, शक्ति, क्रोध और आक्रामक स्वभाव भी है।
शुक्र की प्रकृति
शुक्र का संबंध सुंदरता और विलासितापूर्ण जीवन से है। यदि कोई व्यक्ति शुक्र के प्रभाव में है, तो वह सुंदरता, अच्छी जीवन शैली, रत्न, आभूषण आदि की ओर आकर्षित और अग्रसर होगा।
यह हमारे यौन अंगों और हमारे शुक्राणुओं से भी संबंधित है। तो, शुक्र विपरीत लिंग के आकर्षण, प्रेम, वासना आदि को भी प्रभावित करता है।
बुध की प्रकृति
बुध का संबंध मस्तिष्क, स्मृति, बुद्धि और वाणी से है। बुध के अच्छे प्रभाव में आने वाला व्यक्ति तेज बुद्धि वाला और शीघ्र उत्तर देने में सक्षम (वाकपटु) होता है।
बुध का संबंध व्यापार और गणित से भी है।
चंद्रमा की प्रकृति
चंद्रमा का सीधा संबंध हमारे हृदय, मनोदशा और मन से होता है। कभी हम एक बच्चे की तरह व्यवहार करते हैं, कभी-कभी हमें गुस्सा आता है, और कभी-कभी हम बेहद खुशी महसूस करते हैं। यह सब चंद्रमा द्वारा शासित है।
चंद्रमा बहुत तेज गति से चलता है, ठीक हमारे मन की तरह। वास्तव में, यह सबसे तेज गति से चलने वाला ग्रह है। यह ढाई दिन में एक राशि से दूसरी राशि में छलांग लगा देता है।
जैसे चंद्रमा समुद्रों में ज्वार का कारण बनता है, वैसे ही यह हमारे भीतर बदलते मिजाज का भी कारण बनता है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि हमारे शरीर का 70% से अधिक हिस्सा पानी से बना है।
पूर्णिमा के दौरान पागलपन से संबंधित अधिक मामले होते हैं - यहां तक कि दुनिया भर के पुलिस विभाग भी इसके बारे में जानते हैं और आम जनता को पूर्णिमा की रात और उसके आसपास अधिक सतर्क रहने के लिए चेतावनी जारी करते हैं। इस दौरान अपराध दर अक्सर बढ़ जाती है।
सूर्य की प्रकृति
सूर्य का संबंध हमारे ऊर्जा-स्तर और हमारी आत्मा से भी है। मंगल की तरह ही सूर्य का बल से भी संबंध है। लेकिन मंगल के विपरीत, सूर्य में मस्तिष्क भी होता है, अर्थात सूर्य शक्ति और मस्तिष्क दोनों है।
सूर्य प्रबंधन से भी संबंधित है। जो व्यक्ति सूर्य के प्रभाव में होता है वह निश्चित रूप से एक अच्छा प्रबंधक होता है। सूर्य सभी सरकारी विभागों और नौकरियों से भी संबंधित है।
सूर्य का संबंध दृष्टि से भी है।
बृहस्पति की प्रकृति
बृहस्पति ज्ञान से संबंधित है, जैसे की अच्छे-बुरे में अंतर करने की हमारी क्षमता। और क्यों न हो। आखिर बृहस्पति को देवताओं का गुरु/शिक्षक माना जाता है।
बृहस्पति हमारे शरीर की चर्बी से भी जुड़ा है।
शनि की प्रकृति
शनि शायद सबसे क्रूर और सबसे धीमा ग्रह है। एक राशि से दूसरी राशि में जाने में इसे ढाई साल लगते हैं।
अतः शनि के प्रभाव में रहने वाला व्यक्ति थोड़ा आलसी होगा, और धीरे-धीरे काम करेगा। हालांकि शनि का संबंध शोध से भी है।
शनि का संबंध हमारे बालों से भी होता है।
शनि न्याय का ग्रह भी है, और गरीब लोगों का भी।
राहु की प्रकृति
राहु भी क्रूर ग्रह है। और चंद्रमा की तरह ही, यह भी हमारे मन से संबंधित है।
राहु हमारे भीतर बड़ी चीजें हासिल करने, या हमारे जीवन में महान कार्य करने की इच्छा पैदा करता है। यदि आपकी कुण्डली में कोई ग्रह है जो कर्म करने के लिए तैयार है और उस कुण्डली में राहु भी अच्छा है, तो वह व्यक्ति अवश्य ही महान कार्य करेगा| ऐसा इसलिए है, क्योंकि इससे मन और कर्म का एक महान संयोजन बनता है।
केतु की प्रकृति
केतु का संबंध मोक्ष/मुक्ति से है। इसके प्रभाव में आने वाला व्यक्ति निश्चित रूप से मुक्ति में रुचि रखेगा, क्योंकि उसे यह ज्ञान होगा कि सांसारिक चीजें अस्थायी हैं, और इसलिए उतनी मूल्यवान नहीं हैं जितनी कि कई लोगों द्वारा जताई जाती हैं।
केतु व्यक्ति को उसके दैनिक कार्यों से दूर कर अध्यात्म की ओर धकेलता है।
यद्यपि शनि भी व्यक्ति को अध्यात्म की ओर धकेलता है, लेकिन वह ऐसा उसके जीवन में समस्याएं पैदा करके करता है, अर्थार्थ कष्ट देकर सांसारिक मामलों से वैराग्य पैदा करता है। परन्तु, केतु ऐसा व्यक्ति के अंदर आध्यात्मिक ज्ञान को स्थापित करके करता है।
राहु को शनि की छाया माना जाता है। जबकि, केतु को मंगल की छाया माना जाता है।