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योग के अंग या चरण (yog ke ang ya charan)

योग के (ख़ासतौर से हठयोग के) सात प्रमुख अंग / चरण हैं|

योग के सात प्रमुख अंग / चरण
  • यम
  • नियम
  • आसन तथा मुद्रा
  • प्राणायाम
  • प्रत्याहार
  • ध्यान
  • समाधि

कुछ लोगों के अनुसार योग के आठ अंग हैं| उनके अनुसार प्रत्याहार के पश्चात धारणा आती है, और उसके बाद ही ध्यान होता है|

इन्हें ‘अष्टांग योग सिद्धियाँ’ कहते है। इनके बिना योग सिद्धि नहीं होती। महर्षि पतंजलि ने भी योग के ये ही आठ अंग बताये हैं और इन्हीं की साधना करने की आज्ञा दी है। इन अष्टांगों में ‘आसन’ और ‘प्राणायाम’, ‘हठयोग’ में विशेष है।

(इस लेख में हम जानेंगे - Parts or Phases of Yoga, in Hindi)

यम (yam)

पांच यम बताये गए हैं| योग साधना न करते हुए भी पाँचों यमों से लाभान्वित हुआ जा सकता है।

  • पाँच यमों में प्रथम ‘अहिंसा‘ है, जिससे मनुष्य सबको आत्मवत समझने का अभ्यास कर सकता है। संसार के सभी प्राणियों को अपने समान मानकर किसी को कष्ट न देना, न सताना, हत्या न करना अहिंसा है और यह अहिंसा का पथ सभी के लिए है।

  • सत्य बोलना और सत्याचरण, जो दूसरा यम है कितना उपयोगी और उच्च भाव है, यह सब जानते हैं।

  • ‘अस्तेय‘ अर्थात चोरी का अभाव - किसी भी स्थिति में चोरी बेईमानी व भ्रष्टाचरण न करना भी उच्च भाव है।

  • ‘ब्रह्मचर्य‘ शरीर और मन को ऊँचाइयों पर ले जाता है। इसका अर्थ है यौन चीजों का अभ्यास या विचार न करना, और हमारे मन को वासना से मुक्त करना। हालांकि इसका पूर्ण मतलब इससे बहुत गहरा है।

  • ‘अपरिग्रह‘ के द्वारा लालच, लोभ और स्वार्थों का त्याग हो जाता है।

नियम (niyam)

इसी प्रकार नियम है। नियमों में बंधकर चलने से शरीर और मन दोनों का संयम सरल हो जाता है।

कुछ योगाचार्य ‘हठयोग‘ के लिए यम-नियम को आवश्यक नहीं मानते हैं। परन्तु हठयोगी को भी यम-नियम का पालन करना अच्छा ही है बुरा नहीं।

नियम मनुष्य को योग में भलीभांति प्रवृत्त करते हैं। जो लोग योग के लिए इन्हें आवश्यक नहीं मानते, वे भूल करते हैं। यम और नियम तो सार्वभौम हैं। ये देश और काल से प्रभावित नहीं हैं। सभी देशों और धर्मों के लोग इनसे लाभ उठाते हैं।

आसन तथा मुद्रा (aasan aur mudra)

यम और नियम के पश्चात् आसन आते हैं। ‘आसन‘ योग का महत्त्वपूर्ण अंग है। ‘आसनों‘ को सभी प्रकार के योग विशेष महत्व देते हैं। हठयोग की सिद्धि के लिए अनेक प्रकार के आसन शारीरिक व्यायाम की भांति सिद्ध किये जाते हैं।

हठयोग का एक अभिन्न अंग ‘मुद्रा‘ है। मुद्राएँ भी अनेक हैं। ‘हठयोग प्रदीपिका‘ के अनुसार मुख्य मुद्राएँ निम्न प्रकार हैं:

  • महामुद्रा
  • महाबन्ध
  • महाबेध
  • खेचरी
  • उड्डीयान बन्ध
  • मूलबन्ध
  • जालनधरबन्ध
  • विपरीत करणी
  • वज्रोली
  • शक्ति चालिनी

यह मुद्राएँ वृद्धावस्था व मृत्यु को नष्ट करने वाली हैं। यह मुद्राएँ योगीश्वर आदिनाथ द्वारा कहे हुए आठ दिव्य ऐश्वर्य को प्रदान करती हैं। वे सभी दिव्य सिद्धियाँ सिद्धों को प्रिय तथा देवेताओं को दुर्लभ हैं।

यह मुद्राएँ योगी के शरीर को स्वस्थ और निरोग रखती हुई, योग के विभिन्न अंगों की सिद्धि में अत्यन्त सहायक होने के कारण भी बहुत उपयोगी हैं।

प्राणायाम (pranayam)

‘हठयोग का चौथा अंग है प्राणायाम। आसनों के पश्चात् ‘प्राणायाम‘ अर्थात् प्राणों का संयम किया जाता है। यह भी योग का महत्वपूर्ण अंग है। ‘राजयोग‘ में यह प्रत्याहार से पहले सिद्ध किया जाता है।

नोट

धौति, वस्ति, नेति, नौलि, त्राटक और कपालभाति, यह षट्कर्म हैं। इनका आचरण करना चाहिए। अर्थार्थ षट्कर्म में नियम, आसन, और प्राणायाम सभी समाहित हैं|

प्राणायाम सिद्ध होने पर प्रत्याहार, अर्थात् इन्द्रियों को विषयों पर से हटाना सिद्ध हो जाता है और फिर ‘धारणा‘ अर्थात् मन को किसी वस्तु या शरीर के अंग में लगाते हैं। फिर ‘ध्यान‘ और बाद में समाधि है। इस प्रकार योग सिद्ध होता है। आईये योग के इन चरणों के बारे में भी जान लेते हैं|

प्रत्याहार (pratyahaar)

यह ‘हठयोग‘ में पाँचवे स्थान पर आता है। इसके अभ्यास से बहिर्मुखी इन्द्रियों को अपने-अपने विषयों से हटाकर अन्तर्मुखी बनाया जाता है।

‘हठयोग‘ ग्रंथों में इसका विशेष वर्णन मिलता है। ‘गोरख संहित‘ के अनुसार - जैसे कछुआ अपने अंगों को समेटकर अपने ही अंग विशेष में छिपा लेता है, वैसे ही योगी भी प्रत्याहार के अभ्यास से इन्द्रियों को उनके विषयों से हटाकर आत्मा में लीन कर लेता है।

ध्यान (dhyaan)

हठयोग का छठा अंग ध्यान है। हठयोग प्रदीपिका के अनुसार ध्यान के दो भेद हैं:

  • स्थूल - स्थूल ध्यान उसे कहते हैं जब साधक किसी चित्र, मूर्ति या आकृति में तन्मय चित्त होता है।
  • सूक्ष्म - स्थूल में ध्यान सिद्ध होने पर सूक्ष्म की ओर बढ़ते हैं। हृदयस्थ आत्मा तेजोमय है। आत्मध्यान ही ज्योतिध्र्यान है।
नोट

कुछ लोगों के अनुसार योग के आठ अंग हैं| उनके अनुसार प्रत्याहार के पश्चात धारणा आती है, और उसके बाद ही ध्यान होता है| धारणा और ध्यान में बोहत मामूली अंतर है| धारणा का मतलब है एकाग्रता (concentration), अर्थार्थ अपनी एकाग्रता को बढ़ाना| ध्यान का मतलब है गहरी धारणा (meditation)|

समाधि (samaadhi)

राजयोग की तरह ही, हठयोग का भी अन्तिम अंग समाधि है। इसका अर्थ है गहन ध्यान, या सर्वशक्तिमान के साथ पूर्ण एकीकरण।

सभी प्रकार के योगों में यह अंतिम अंग के रूप में स्वीकार्य है। क्योंकि समाधि से ऊपर किसी भी क्रिया की गति नहीं है। इसमें ध्येय की ही प्रतीति होती है। चित्त का अपना रूप शून्य होता है। साधक हो अपना भी ध्यान नहीं रहता। समाधि के बाद अगला कदम ‘मुक्ति’ ही है।

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