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चोरी का कैलकुलेटर - एक महत्वपूर्ण जीवन-पाठ (लघुकथा)

1992 की गर्मी थी। 11 साल का एक लड़का, मयंक अपने माता-पिता के साथ बरेली के एक नए शहर में आया था। नया स्कूल, नए दोस्त।

अंतर्मुखी होने के कारण, यह स्थिति उनके पसन्द की नहीं थी। वह नए दोस्त बनाने में समय लेता था। बरेली स्थानांतरित होने से पहले उनके पिता आगरा शहर में 3 साल के लिए न्यायाधीश के रूप में तैनात थे। मयंक ने वहां थोड़ी मेहनत से कुछ दोस्त बनाए थे। लेकिन अचानक से वह सारे दोस्त छूट गए।

मयंक को अपने नए स्कूल में जाते हुए लगभग 2 महीने हो चुके थे, और उसने गौरव, अतुल और अजीज जैसे कुछ दोस्त बनाए। उसे कम ही पता था कि उसने इनमें से कुछ दोस्तों का गलत चुनाव किया है। उसे जल्द ही यह पता लग जायेगा!

अंक I: मयंक का लालच

अतुल और अजीज बहुत बहिर्मुखी किस्म के बच्चे थे, उनके उनके बहुत सारे दोस्त थे। हालांकि मयंक अंतर्मुखी था, पर वो दब्बू नहीं था, जो किसी भी दुर्व्यवहार को सहन करेगा। उसमें काफी स्वाभिमान था। धौंसियाने वाले लोग (bully) इस चीज़ को व्यक्ति में भाँप लेते हैं। वे जानते हैं कि किनको धमकाया जा सकता है, और किनको नहीं। तो, यह कहानी इस बारे में नहीं है।

एक दिन स्कूल में, अतुल अपने साथ एक इलेक्ट्रॉनिक गैजेट, एक कैलकुलेटर लाया। वह इसे अपने दोस्तों को दिखा रहा था। मयंक ने इलेक्ट्रॉनिक के उस टुकड़े को देखा और तुरंत मंत्रमुग्ध हो गया। उसने पहले कभी कैलकुलेटर नहीं देखा था। हालांकि वह एक संपन्न परिवार से थे, लेकिन वह 90 का दशक था। कंप्यूटर प्रचलन में आ ही रहा था, मोबाइल नहीं थे, और किसी-किसी के पास ही रंगीन टीवी होता था।

तथ्य यह है कि मयंक गणित में थोड़ा कमजोर था| शायद इसने उसके मोह को और प्रबल कर दिया। एक ऐसी मशीन जो उसके लिए गणित के सवाल हल कर सकती है। कितना आकर्षक! यह एक छोटा सा जादू का डिब्बा था। उसने अपने जीवन में पहले कभी किसी चीज़ को इतना नहीं चाहा था।

हालाँकि मयंक के माता-पिता उन लोगों में से नहीं थे जो अपने बच्चों की सभी माँगों को पूरा करते हैं और उन्हें बिगड़ैल बच्चों में बदल देते हैं। और वह यह समझने के लिए पर्याप्त परिपक्व था कि उसकी सभी इच्छाएं पूरी नहीं हो सकतीं। और कुछ के लिए उसे इंतजार करना होगा; उसे धैर्य रखना होगा।

परन्तु, इस बार मामला कुछ अलग था। उसकी इच्छाएँ बहुत प्रबल होती जा रही थीं। उसने अतुल से कैलकुलेटर के बारे में बात की - कहाँ से मिला, कितना खर्च हुआ? अतुल ने उससे कहा कि अगर उसे दिलचस्पी है, तो वह उससे 200 रुपये में खरीद सकता है। 90 के दशक के 11 साल के बच्चे के लिए यह बहुत बड़ी रकम थी।

मयंक को प्रतिदिन दोपहर के भोजन के लिए 5 से 10 रुपये मिलते थे, जिससे वह मध्यान्तर के दौरान समोसा और पैटी खरीदता था। उसे 100 रुपये पॉकेट मनी के रूप में भी मिलते थे, जो वह अपनी मां के पास जमा कर देता था। तो, उस समय पॉकेट मनी की बचत के रूप में, मयंक के पास लगभग रु 500-600 थे। लेकिन एक बड़ी समस्या थी। वह अपनी माँ को क्या बताएगा? उसे रुपये की आवश्यकता क्यों है? अचानक से 200 रुपये ? बिना अपने माँ-बाप को बताये मयंक ने आजतक इतने रुपये कभी खर्च ही नहीं किये थे|

अचानक माँ के पास अपना पॉकेट मनी रखने का विचार उसे मूर्खतापूर्ण लगने लगा !

मयंक की मां ने हमेशा अपने बच्चों को अनावश्यक खर्च कम करना सिखाया। वह उसका इस प्रकार रुपये खर्च करना पसंद नहीं करेंगी। अचानक से 200 रुपये। हो सकता है कि उसे मना न किया जाए, लेकिन यह निश्चित है कि कुछ दिनों के लिए उसे कुछ अप्रिय प्रकार से घूरा अवश्य जाएगा। उसे दोषी महसूस कराने के लिए यह पर्याप्त होगा।

लेकिन वह उस कैलकुलेटर को किसी भी कीमत पर चाहता था। अतः, उसने एक अनूठा निर्णय किया। वह खुद अपनी पॉकेट मनी चुरायेगा !

उसने पहले कभी चोरी नहीं की थी, एक पैसे की भी नहीं। और अब 200 रुपये चोरी करने का विचार उसे ऐसा लगा जैसे वह नेशनल बैंक को लूटने वाला है। लेकिन मयंक एक बहादुर बच्चा था, जो एक बार अपने लक्ष्य को निर्धारित करने के बाद उसे पूरा करता ही करता था। इसी तरह वह अपनी पढ़ाई और खेल में भी करता था।

तो, यह निर्णय लिया गया - दोपहर में यह कार्य किया जाएगा जब पिताजी घर से बाहर होंगे और माँ दोपहर की झपकी ले रही होंगी।

घर पर और कोई न होने के कारण उसने धीरे से स्टोररूम का दरवाजा खोला। उस स्लैब तक चढ़ गया जहां उसकी पॉकेट मनी थी और वहां से 200 रुपये ले लिए। मिशन पूरा हुआ! आशा है कि माँ को कभी पता नहीं चलेगा।

अगले दिन वह रुपये लेकर स्कूल गया। उसकी जेब में 200 रुपये थे - जीवन में उसके जेब में आयी अब तक की सबसे बड़ी राशि। वह बिल गेट्स की तरह महसूस कर रहा था!

उसने अतुल से बात की, उसे पैसे दिखाए और सौदा हो गया। मयंक के पास इतना पैसा देखकर अतुल और उसके दोस्तों की आंखें चौड़ी हो गईं। अतुल ने मयंक से कहा कि वह स्कूल खत्म होने के बाद उसे कैलकुलेटर दे देगा। मयंक को इससे कोई दिक्कत नहीं थी। उसने उस कैलकुलेटर का कई दिनों तक इंतजार किया था। कुछ घंटे का इंतजार और सही।

अवकाश के दौरान, मयंक ने पैसे अपने साथ नहीं ले जाने का फैसला किया, क्योंकि उसे डर था कि कहीं वह उसकी जेब से गिर न जाएं। इसलिए, उसने अपने स्कूल बैग में ही पैसे छोड़ दिए, और आलू की पैटी खाने के लिए कक्षा से निकल गया। लेकिन जब वह वापस लौटा और अपना बैग चेक किया तो पैसे गायब हो चुके थे। उसका चेहरा सफेद पड़ गया!

उसे किसी ने लूट लिया है। इतना पैसा। यह कौन कर सकता है? शायद अतुल या उसका कोई दोस्त। केवल उन्होंने उसके साथ पैसे देखे थे। केवल वे ही जानते थे कि मैं आज कैलकुलेटर खरीदने के लिए पैसे लेकर आया हूं। उन्होंने ही किया होगा। लेकिन अब क्या किया जा सकता है?

मयंक ने अतुल का इस बात को लेकर सामना किया, पर उसने केवल अपनी सहानुभूति व्यक्त की। वह चोरी की घटना से अनभिज्ञ था। लेकिन क्या वह सच बोल रहा था या सिर्फ नौटंकी कर रहा था ? मयंक के दिमाग में ऐसी हज़ारों बातें चलने लगीं। उसके बाद वह कक्षा में ध्यान केंद्रित कर ही नहीं पाया। वह अपने माता-पिता की गाढ़ी कमाई में से इतना पैसा कैसे खो सकता है? कैसे? क्यों?

तभी उसे अतुल के बैग में कैलकुलेटर नजर आया। अतुल क्लास में उसके पास ही बैठा करता था। कैलकुलेटर मयंक की पहुंच से महज एक हाथ की दूरी पर था। शायद यह अतुल ही है जिसने उसके पैसे चुराए हैं और उसे सबक सिखाया जाना चाहिए। एक बात जिससे मयंक को पैसे खोने से ज्यादा नफरत थी, वह थी किसी के द्वारा बेवकूफ बनाया जाना। अतुल और उसके दोस्त दिल ही दिल में उस पर हंस रहे होंगे।

यह स्कूल का अंतिम पीरियड था। छात्रों से भरी कक्षा। स्कूल खत्म होने से पहले मयंक यह कैसे करेगा। अतुल शायद दोबारा स्कूल में कैलकुलेटर नहीं लाएगा। अतुल आज कैलकुलेटर लाया, इसका एकमात्र कारण यह था कि मयंक ने उससे एक दिन पहले बात की थी कि वह अगले दिन उससे इसे खरीद लेगा।

तभी मयंक को एक विचार आया। अंतिम पीरियड के बाद, स्कूल खत्म होने से पहले, सभी छात्र 2 मिनट के लिए नमस्ते मुद्रा में हाथ जोड़कर और आंखें बंद करके प्रार्थना करते थे। यही एकमात्र मौका है जब मयंक हाथ बढ़ाके अतुल के बैग से कैलकुलेटर निकाल सकता है।

वो समय भी जल्द आ गया। सभी छात्र उठे और आंखें बंद कर लीं। प्रार्थना शुरू हुई। मयंक का हृदय धड़क रहा था। उसने पहले कभी ऐसा कुछ नहीं किया था। इसके आस - पास भी नहीं!

क्या वह अतुल को सबक सीखाने के लिए ऐसा कर रहा था, या वह किसी भी कीमत पर उस कैलकुलेटर को पाने की इच्छा से अंधा हो गया था। शायद दोनों। लेकिन यह सोचने का समय नहीं था। यह कुछ करने का समय था। और उसने किया भी।

मयंक ने अपनी आँखें खोलीं, चारों ओर देखा और एक झटके में काम हो गया।

घर जाते हुए, मयंक ने मिश्रित भावनाओं को महसूस किया - दो दिनों में दो चोरी करने के बाद भी पकड़े नहीं जाने की राहत, अतुल को सबक सीखाने पर एक जीत का सा एहसास, लेकिन एक अज्ञात डर भी।

अगले दिन, जब वह स्कूल गया, तो हंगामा ही कट गया।

अंक II: मयंक ने मरने का फैसला किया

अतुल ने क्लास टीचर को कैलकुलेटर चोरी होने की सूचना दे दी थी। हालांकि उसने चोरी होते हुए देखी नहीं थी, लेकिन उसे मयंक पर शक था। दूसरी ओर, मयंक ने सोचा कि उसने चोरी का यह कार्य करके, अतुल द्वारा किये गए ऐसे ही काम का प्रतिशोध लिया है, एक सही काम किया है।

इसलिए, वह अपनी बात पर कायम रहा और अतुल द्वारा उस पर लगाए गए किसी भी आरोप से इनकार कर दिया। क्लास टीचर ने मयंक से पूछताछ की, लेकिन वह इस बात से इनकार करता रहा कि उसने कैलकुलेटर लिया था। हालांकि यह सब मयंक जैसे छात्र के लिए बहुत शर्मनाक था, जो बहुत अध्ययनशील था और उसे शिक्षकों या उसके माता-पिता द्वारा शायद ही कभी दंडित या डांटा जाता था।

किसी तरह वह दिन ढल गया और मयंक घर आ गया। कितना बुरा दिन था!

और आगे शायद और बुरा होने वाला था। उस सप्ताह के अंत में माता-पिता-शिक्षक बैठक निर्धारित थी!

माता-पिता-शिक्षक बैठक के दिन तक का 3-4 दिन का लंबा इंतजार असहनीय था। मयंक ने अपनी भूख खो दी, उसके लिए सोना या पढ़ाई करना मुश्किल हो गया। उसे यकीन था कि क्लास टीचर चोरी की घटना के बारे में उसके माता-पिता को बताएगी। कितनी शर्मिंदगी महसूस होगी!

और अपने जीवन में पहली बार उसने अपने जीवन को समाप्त करने के बारे में सोचा। इतने छोटे बच्चे के जहाँ में इतना विकृत विचार। लेकिन ऐसा हुआ, और उसे यह, आगे आने वाली शर्मिंदगी का सामना करने से बेहतर लग रहा था। मयंक ने निश्चय किया कि यदि शिक्षक घटना की सूचना उसके माता-पिता को देगी, तो वह उनके रोष का सामना करने और अत्यधिक शर्म महसूस करने के बजाय पहली मंजिल की बालकनी से कूद जाएगा। (हालाँकि इससे उसे केवल चोट ही लगती, लेकिन वह एक बच्चे की योजना थी।)

वो दिन भी आया। उसके माता-पिता स्कूल के लिए निकल गए। मयंक ने इंतजार किया और भगवान से प्रार्थना करता रहा !

मेन गेट के पास जरा सी भी आहट, और उसका दिल धड़कने लगता। ऐसा लग रहा था की वो उसके सीने से बाहर ही निकल जायेगा।

अब तक क्लास टीचर ने मेरे माता-पिता को बता दिया होगा!
उन्हें कितनी शर्मिंदगी महसूस हो रही होगी!
वे कितने उग्र होंगे!
लगभग एक घंटा हो चूका है; वे अब कभी भी वापस आ रहे होंगे!
मृत्यु का समय! ओह यार! कितना दर्द होगा!
लेकिन मैं अपने माता-पिता का सामना नहीं कर सकता!

फिर वह क्षण आया। माता-पिता ने दरवाजे की घंटी बजाई। मयंक ने बालकनी पर नज़र रखते हुए दरवाजा खोला।

वे हँस रहे थे!!! यह क्या???

उसने क्रोध, घृणा या पीड़ा के किसी भी संकेत को भाँपने की कोशिश की, लेकिन उनके चेहरे पर ऐसा कोई चिह्न नहीं था। शायद शिक्षक मेरे माता-पिता से मिली ही नहीं। शायद वह घटना का जिक्र करना भूल गयीं। पता नहीं।

क्या होगा अगर वह मुझसे अगले दिन अपने माता-पिता को फिर से स्कूल लाने के लिए कहें? अचानक, दिल फिर से डूबने लगा। माहौल अंधकारमय हो गया। सब फिर से धुंधला दिखने लगा।

लेकिन स्कूल में अगले दिन भी सबकुछ सामान्य बीता। कुछ नहीं हुआ। और ऐसा ही उससे अगले दिन हुआ, और उससे अगले दिन।

यह एक चमत्कार जैसा था!

अंक III: ज्ञानोदय!

मयंक ने अपना बेशकीमती सामान छत पर, पानी की टंकी के नीचे पड़े पत्तों के नीचे छिपा रखा था। वहीं वह अपनी जादुई मशीन का उपयोग करने, और कुछ गणनाओं का आनंद लेने जाता था।

उसने अपने कैलकुलेटर को अपनी बहन और अपने इलाके के कुछ दोस्तों को भी दिखाया। वह इस बेशक़ीमती चीज़ का दिखावा करने से खुद को रोक नहीं पाया! हालांकि उसने उन्हें यह कभी नहीं बताया कि उसे वह कैलकुलेटर कैसे मिला।

परन्तु जल्द ही उसकी इसमें दिलचस्पी कम होने लगी। बोझ सा लगने लगा। पकड़े जाने का डर सताने लगा !

वह अपने माता-पिता को क्या बताएगा? वह इतनी महंगी इलेक्ट्रॉनिक् वस्तु को पाने में कैसे कामयाब रहा?

उसे फिर नींद आने में दिक्कत होने लगी। भूख फिर से मर गयी। अपनी सबसे कीमती संपत्ति अब उसे सबसे शापित वस्तु के रूप में महसूस हुई।

जल्द ही उसने फिर एक निर्णय लिया।

उसे कैलकुलेटर से छुटकारा पाना होगा, उसे नष्ट करना होगा!

वह छत पर गया, आखिरी बार अपने कैलकुलेटर के साथ खेला और फिर उसे अपने घर के पीछे वाली सड़क पर फेंक दिया। वह सड़क शहर के सर्किट हाउस के अंदर थी।

मयंक ने अपने प्रिय, बेशकीमती कैलकुलेटर को कठोर सड़क से टकराते हुए और टुकड़ों में टूटते देखा। लेकिन उस क्षण वह उदास नहीं हुआ, उसने स्वतंत्रता का अनुभव किया, उसे सर्वोच्च कोटि का सुख महसूस हुआ।

उस दिन उसने सीखा कि कोई भी सांसारिक संपत्ति उसे वह सुख नहीं दे सकती जो वह चाहता है। कोई भी सांसारिक संपत्ति अच्छी रात की नींद और स्वाभिमान को खोने के लायक नहीं है।

उस दिन उसे पता चला कि कड़ी मेहनत से प्राप्त की गई चीजें, बुरे तरीकों से प्राप्त चीजों की तुलना में अधिक मीठी लगती हैं। उस दिन उसने फिर कभी गलत रास्ते पर नहीं जाने का फैसला किया। अनावश्यक चीज़ों का लालच न करें। बल्कि मेहनत से कमाएं और साफ विवेक के साथ जिएं।

उस कैलकुलेटर ने उसे जीवन का हिसाब सिखा दिया !

इतने सारे जीवन पाठों को उसने इतनी जल्दी सीख लिया।

क्या आप लोग भी कुछ सबक बता सकते हैं, जो हम इस कहानी से सीख सकते हैं? मयंक ने जो किया, क्या आपने उससे कुछ अलग किया होता? हम यह सब नीचे टिप्पणी अनुभाग में जरूर जानना चाहेंगे।

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