post-thumb

शाकाहार सही या मांसाहार? (shakahar sahi ya mansahar?)

यदि आप चर्चा और बहस पसंद करते हैं तो इसकी बहुत संभावना है कि आप अपने जीवन के कम से कम एक बार शाकाहारी बनाम मांसाहारी बहस का हिस्सा रहे होंगे।

इस लेख में, हम सभी कोणों से इस विषय पर चर्चा करेंगे और गहराई में जाकर इसका विश्लेषण करेंगे। स्वास्थ्य के विषय के बजाय हमारा ध्यान दार्शनिक, नैतिक और मानवशास्त्रीय पहलुओं पर अधिक होगा।

Table of Contents
  • शाकाहार का अर्थ / शाकाहार की परिभाषा
  • मनुष्य शाकाहारी है या मांसाहारी?
  • वेज बनाम नॉन-वेज बहस
  • मांसाहारी भोजन के कुछ नुकसान

शाकाहार का अर्थ / शाकाहार की परिभाषा

शाकाहार एक ऐसी प्रथा है जिसमें लोग मांस खाने या पशु वध से सम्बंधित किसी भी उत्पाद से पूरी तरह से परहेज करते हैं।

मांस से हमारा मतलब सभी प्रकार के पशु, पक्षी या मछली के मांस से है। बिना वध किए पशुओं से प्राप्त उत्पादों (जैसे दूध) को नॉन-वेज भोजन नहीं माना जाता है।

मनुष्य शाकाहारी है या माँसाहारी?

इससे पहले कि हम वेज और नॉन-वेज बहस की शुरुआत करें, हमें अपने आपको पहचानना होगा। क्या हम प्राकर्तिक रूप से शाकाहारी हैं या माँसाहारी ?

  • माँसाहारी जानवर अपने खाने को केवल काट सकते हैं और निगल सकते हैं| वे खाने को चबा नहीं सकते। इसके विपरीत, हम मनुष्यों में दोनों क्षमतायें होती हैं, काटने की भी और चबाने की भी। हमारे पास भोजन काटने के लिए तेज दाँत (incisors) हैं| साथ ही भोजन को पीसने के लिए हमारे पास दाढ़ भी हैं।

  • हमारे लार में एक एंजाइम (Ptylin) होता है, जो हमारे मुंह में ही कार्बोहाइड्रेट को पचाने लगता है। अतः, हम मनुष्य हमारे भोजन को अपने मुंह में ही पचाना शुरू कर देते हैं। माँसाहारियों के साथ ऐसा नहीं है।

  • एक और तथ्य है जो यह साबित करता है कि हम शाकाहारी हैं, मांसाहारी नहीं| यह है हमारी आहार नली और आँतों की लंबाई। शाकाहारी जानवरों में यह शरीर की लंबाई से पांच से छह गुना अधिक होती है, जबकि मांसाहारियों में यह उनके शरीर की लंबाई से सिर्फ दो से तीन गुना अधिक ही होती है। इस हिसाब से भी हम इंसान मांसाहारियों की श्रेणी में नहीं आते हैं।

  • इसके अलावा, शाकाहारी जानवर को रोजाना खाने की जरूरत होती है, जबकि ज्यादातर मांसाहारी जानवर केवल तीन से चार दिनों में एक बार खाना खाते हैं। मनुष्य को भी रोजाना खाना चाहिए।

अतः, हम शायद शाकाहारी या सर्वहारी हैं, माँसाहारी नहीं।

वेज बनाम नॉन-वेज बहस

अब तक हम यह अच्छे से समझ चुके हैं कि मनुष्य पूर्णकालिक मांसाहारी तो कदापि नहीं हैं| तो अब आइए, हम शाकाहार बनाम माँसाहार के मुद्दे पर ध्यान दें।

क्या हमें शाकाहारी जीवन शैली का विकल्प चुनना चाहिए?

शाकाहार का समर्थन और विरोध करने वाले लोगों ने प्रमुख्तः क्या तर्क प्रस्तुत किये हैं?

माँसाहारी तर्क 1: अगर हर कोई शाकाहारी हो जाए तो भोजन की कमी हो जाएगी

पृथ्वी में सीमित मात्रा में खाद्य संसाधन हैं। अगर हम सभी शाकाहारी बन गए, तो कृषि और डेयरी उत्पादों पर बहुत अधिक भार पड़ेगा। लोग भूखों मरने लगेंगे।

शाकाहारी प्रतिवाद 1

पृथ्वी पर उपलब्ध कृषि भूमि में से केवल 24% भूमि का उपयोग फसलों को उगाने और मनुष्यों को खिलाने के लिए किया जाता है। शेष भूमि का उपयोग पशुओं को पालने और खिलाने के लिए किया जाता है। इसलिए, अगर अधिकांश लोग शाकाहारी बन जाते हैं, तो हम कृषि भूमि को कुछ हद तक बढ़ा सकते हैं।

साथ ही, कृषि उपज का लगभग 33% बर्बाद हो जाता है। यदि मांग बढ़ेगी तो यह अपव्यय निश्चित रूप से कम करा जाएगा।

माँसाहारी तर्क 2: जानवरों में जनसंख्या विस्फोट होगा अगर हम उन्हें खाना बंद कर दें

यदि हम सभी शाकाहारी बन जाते हैं, तो मुर्गियों, सूअरों आदि जानवरों की देखभाल कौन करेगा? हम उन्हें भोजन और आश्रय प्रदान करते हैं और बदले में हम उन्हें खाने के हक़दार हैं।

इसके अलावा, अगर हम इन जानवरों को खाना बंद कर देते हैं, तो उनकी बढ़ती आबादी पर कोई रोक नहीं होगी। उदाहरण के लिए, मुर्गियों और भेड़ों की आबादी अत्यधिक हो जाएगी और वे सभी फसलों और खेतों आदि को नष्ट कर देंगे। महासागरों में मछलियों और केकड़ों आदि की आबादी हद से ज्यादा बढ़ जाएगी।

शाकाहारी प्रतिवाद 2

सामान्यतः इंसान प्रकर्ति में अपनी भूमिका को बहुत बड़ा मानते हैं। पर क्या यह सोच सही है?

इस ग्रह में जीवन लाखों वर्षों से पनप रहा है। सिर्फ कुछ हज़ार साल पहले से ही इंसान ने इस धरती पर प्रमुख भूमिका निभानी प्रारम्भ की है, खासतौर से हमारी आबादी काफी बढ़ जाने के बाद।

लेकिन अतीत में कभी भी प्रकर्ति में असंतुलन नहीं हुआ। यदि कोई छोटा-मोटा असंतुलन होता भी है, तो प्रकृति के पास संतुलन को फिर से स्थापित करने के कई तरीके होते हैं। उसे इंसानों की जरूरत तब भी नहीं थी, आज भी नहीं है| इंसानो ने प्रकर्ति की सहायता कम और नुक्सान अधिक किया है| विभिन्न खाद्य श्रृंखलाओं ने तब तक ठीक काम किया जब तक कि मनुष्यों ने आकर उन्हें नष्ट नहीं कर दिया।

उदाहरण के लिए, 1960 के दशक में माओ के राज में चीन ने बड़ी संख्या में गौरैया को मारने का फैसला किया, क्योंकि वे बहुत सारी फसलें खा जाती थीं। उन्हें वामपंथी पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा लाखों की संख्या में मारा गया। लेकिन इससे व्यापक कीट समस्या हो गयी, और भारी मात्रा में फसल बर्बाद हुई। गौरैया इन कीटों को खाती थीं और इस प्रकार फसलों को इन कीड़ों से बचाकर रखती थीं। प्रकर्ति के साथ किये गए इस खिलवाड़ की वजह से 1960 के दशक में चीन में बहुत बड़े पैमाने पर अकाल पड़ा और लाखों लोग भूखमरी के कारण मारे गए|

अतः, हमें इस ग़लतफ़हमी से बाहर आ जाना चाहिए| इन सभी जानवरों को हमारे दिए गए खाने या देखभाल की आवश्यकता नहीं है। हमने उनमें से कुछ को अपने स्वार्थों की पूर्ती के लिए पालतू बनाया है; कुछ को सुरक्षा के लिए, कुछ को भोजन के लिए, कुछ को केवल दिखावटी सामान के रूप में|

अगर आप कसाई की दुकानों पर जानवरों की स्थिति पर एक नज़र डालें, जिस तरह से इन जानवरों को पिंजरों में रखा जाता है, उन्हें कैसे लाया ले जाया जाता है, कारखानों में कैसे उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है, तो आप यह नहीं कह सकते कि हम उनकी “देखभाल” कर रहे हैं| यह जगहें तो पृथ्वी पर नर्क के समान हैं। COVID-19 जैसी कई बीमारियां भी हमारे इन जंगली प्रजातियों के जानवरों के साथ किये गए अप्राकर्तिक व्यवहार का नतीजा हैं।

एक और बात सोचने वाली है। हमने माँस की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उनके प्रजनन को भी अपने हाथों में ले लिया है। माँसाहारी भोजन की मांग को पूरा करने के लिए, बड़े पैमाने पर इन जानवरों का कृत्रिम रूप से प्रजनन और उत्पादन किया जाता है। इसलिए, हम इंसान इन जानवरों को इसलिए नहीं खा रहे हैं क्योंकि वे काफी मात्रा में हैं| इस ग़लतफ़हमी से बाहर निकलिए| हम माँस खाकर प्रकृति की कोई सेवा नहीं कर रहे हैं। बल्कि, हम अप्राकृतिक तरीकों से उन जानवरों का बड़े पैमाने पर उत्पादन कर रहे हैं।

ऐसा मांस मनुष्य के लिए उतना स्वस्थ भी नहीं होता है। उदाहरण के लिए, क्या आप जानते हैं कि कई मुर्गियों को हार्मोनल इंजेक्शन दिए जाते हैं ताकि वे बहुत तेज़ी से बढ़ सकें। यह उनके लिए बहुत दर्दनाक होता है, और ऐसा माँस कम गुणवत्ता का होता है।

एक दुखद तथ्य!

हर साल लगभग 80 बिलियन जानवरों को मार दिया जाता है। यह इस ग्रह पर मनुष्यों की आबादी का 10 गुना से भी अधिक है!

माँसाहारी तर्क 3: ताक़तवर हमेशा कमज़ोरों को खाते हैं

क्या आप शेर या बाघ के पास जाकर, उन्हें मांस खाने के बजाय घास खाने को कह सकते हैं? आप यह नहीं कर सकते।

प्रकृति ने उन्हें मांसाहारी बनाया है। प्रकृति गलत कैसे हो सकती है? माँसाहारी जानवर कमज़ोर शाकाहारी जानवरों को खाकर ही ज़िंदा रह सकते हैं| यह डार्विन (Darwin) द्वारा बताया गया प्रकर्ति का नियम है - श्रेष्ठ ही जीवित रहते हैं।

इसी तरह, कुछ जानवर (जैसे भालू) सर्वहारी होते हैं। इसी तरह, मनुष्य सब्जियां भी खा सकते हैं, दूध को भी पचा सकते हैं और मांस भी खा सकते हैं।

शाकाहारी प्रतिवाद 3

क्या आप वास्तव में जानवरों, मछलियों और पक्षियों से मनुष्यों की तुलना कर सकते हैं?

जानवर अपनी प्रवृत्ति के गुलाम होते हैं। वे भूख और काम से ही प्रेरित होते हैं। उनके पास कोई विकल्प नहीं है। हमारे पास है!

उनकी चेतना और मानसिक स्तर मनुष्यों से कम होता है। क्या आप जानते हैं कि सबसे होशियार कुत्ते भी केवल दो साल के मानव बच्चे के बराबर ही मानसिक क़ाबिलियत रखते हैं?

एक समय था जब हम इंसान भी ऐसे ही हुआ करते थे। लेकिन हम विकसित हुए। हमने अपनी जंगली प्रकर्ति को नियंत्रित करना सीख लिया है। इस तरह हमने सभ्यताओं का निर्माण किया और मूल्यों और नैतिकताओं का विकास किया।

इस ग्रह की सबसे बुद्धिमान और प्रमुख प्रजाति होने के नाते, क्या बड़े भाई की तरह कार्य करना हमारा कर्तव्य नहीं है? हमें अन्य प्रजातियों के साथ अगर प्यार नहीं तो सहानुभूति तो रखनी ही चाहिए!

कुछ दशक पहले तक, भारत सहित दुनिया में कई नरभक्षी जनजातियां हुआ करती थीं (आप अभी भी दुनिया में कुछ ऐसी जनजातियां पा सकते हैं)। नरभक्षण पर आपका क्या विचार है? घृणित लगता है, है ना। संभवतः यह वैसा ही है जैसे एक शाकाहारी व्यक्ति महसूस करता है, जब वह माँसाहार के बारे में सोचता है।

नरभक्षण पर प्रतिबंध लगा दिया गया और उन नरभक्षी जनजातियों को ख़त्म किया गया और दंडित किया गया। क्योंकि वह बर्बर माना जाता था। यह मानव सभ्यता का निम्न रूप था। सही बात है!

मनुष्य के रूप में हमें अपनी सभ्यता में सुधार करते रहना चाहिए। संभवतः हम सभी सहमत होंगे कि अधिक अहिंसक सभ्यता एक बेहतर सभ्यता होती है। इस पैमाने के अनुसार, एक शाकाहारी सभ्यता को मांसाहारी सभ्यता की तुलना में बेहतर माना जाएगा, है ना?

माँसाहारी तर्क 4: आवश्यक पोषक तत्व

ऐसे कई पोषक तत्व हैं जो केवल पशु भोजन से प्राप्त किए जा सकते हैं, या उनमें अधिक आसानी से उपलब्ध हैं, उदहारण के लिए मछलियों में ओमेगा -3 फैटी एसिड होता है।

यहां तक ​​कि शाकाहारी लोग दूध और पनीर जैसे कई पशु उत्पादों का सेवन करते हैं। क्या गायों से दूध लेना अनैतिक नहीं है, जो वो अपने बछड़ों के लिए देती हैं?

इसके अलावा, ऐसे कई देश और क्षेत्र हैं, जहाँ शाकाहारी भोजन आसानी से उपलब्ध नहीं होता है। समुद्र के किनारे रहने वाले समुदायों की कल्पना करें। वे दैनिक आधार पर सिर्फ शाकाहारी भोजन नहीं ले सकते, खासकर अगर वे गरीब हैं। ऐसे कई स्थानों पर शाकाहारी भोजन में पर्याप्त विविधता का अभाव है। ऐसे स्थानों में उपलब्ध सीमित शाकाहारी आहार में आवश्यक खनिजों और विटामिनों की कमी होती है। इससे कुपोषण हो सकता है।

शाकाहारी प्रतिवाद 4

अगर कोई विकल्प नहीं है, तो हमें निश्चित रूप से माँस खाना चाहिए। हम लोगों से इतना महान बनने की उम्मीद नहीं कर सकते, कि वो भूके मरने की नौबत आने पर भी माँस ना खाएं!

लेकिन अपने आप से यह प्रश्न पूछें, कि क्या हममें से ज्यादातर इसलिए माँस खाते हैं क्योंकि हमारे पास पर्याप्त अच्छे शाकाहारी विकल्प उपलब्ध नहीं हैं?

क्या हम पोषण प्राप्त करने के लिए माँस खाते हैं, या सिर्फ स्वाद के लिए ?

हमें बेशक माँस खाना चाहिए अगर यह किसी के जीवन के लिए आवश्यक है। लेकिन दुखद सच्चाई यह है कि हममें से ज्यादातर लोग जानवरों के माँस को सिर्फ स्वाद के लिए खाते हैं। हमारी स्वाद ग्रंथियों को संतुष्ट करना हमारे लिए एक निर्दोष जानवर के जीवन से अधिक महत्वपूर्ण है!

मेरा विश्वास करिये, शाकाहारी भोजन हमें सभी आवश्यक खनिज प्रदान करता है। खासतौर पर, अगर आप घर का बना खाना, फल, मौसमी सब्जियां, दालें आदि खा रहे हैं और कुछ हद तक आयुर्वेदिक परंपराओं का पालन कर रहे हैं।

माँसाहारी तर्क 5: क्या पौधे जीवित प्राणी नहीं हैं?

क्या पौधे और पेड़ जीवित प्राणी नहीं हैं?

क्या उन्हें दर्द महसूस नहीं होता?

शाकाहारी लोग भी तो जीवित प्राणियों को अपने खाने के लिए मार रहे हैं।

इसके अलावा, कई शाकाहारी लोग गाय या भैंस के दूध का सेवन करते हैं। क्या डेयरी उत्पादों का सेवन करना नैतिक है?

शाकाहारी प्रतिवाद 5

ये सही बात है कि, पौधे जीवित जीव हैं। कुछ अध्ययनों से पता चला है कि वे दर्द भी महसूस करते हैं।

लेकिन एक बात तो सुनिश्चित है। पौधे जानवरों की तुलना में बहुत कम चेतन होते हैं। ठीक उसी तरह, जैसे इंसान जानवरों के मुकाबले ज्यादा चेतन होते हैं। जानवरों की तुलना में पौधों का तंत्रिका तंत्र अल्पविकसित होता है, और इसलिए उन्हें जो भी दर्द महसूस होता है उसकी तुलना किसी जानवर से नहीं की जा सकती। क्या आपने किसी जानवर की भयक्रांत चीख सुनी है? अगर आपके सुनी है, तो आप यह बात समझ जाएंगे।

जैसा कि हमने पहले भी कहा, हम सबसे महापुरुष होने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। आखिर हमें किसी भी तरह जीवित तो रहना ही है। लेकिन हमें यह कार्य, जितना संभव हो, उतना मानवीय रूप से करना चाहिए। शायद हर कोई इस बात से सहमत होगा कि सीमित मात्रा में किसी गाय से दूध प्राप्त करना, उसका वध करने से कहीं अधिक मानवीय है। यदि आपके पास कोई अच्छा शाकाहारी विकल्प नहीं है, तो नॉन-वेज खाने में कोई गलत बात नहीं है। हर्गिज नहीं!

हम इस तथ्य से इंकार नहीं कर सकते हैं, कि वेज खाना, नॉन वेज खाने की तुलना में, बहुत कम क्रूर लगता है। तो, यह अपेक्षाकृत बेहतर जीवनशैली है, है ना? जीवन में कुछ भी पूरी तरह सही या गलत नहीं होता है।

इन सब के अलावा, नॉन-वेज फूड की आदत के कुछ परिधीय नुकसान भी हैं।

मांसाहारी भोजन के कुछ नुकसान

  • ग्रीनहाउस गैसें: दुनिया में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (ज्यादातर मीथेन) का लगभग 18% पशुधन से आता है। मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में बहुत ज्यादा हानिकारक ग्रीनहाउस गैस है।

  • पानी: दुनिया में ताजे पानी की खपत का लगभग 70% पशुधन करता है। पशुओं द्वारा उत्पन्न बायोमास का लगभग 94% पशुधन द्वारा उत्पन्न होता है। अर्थात्, वन्यजीव हमारे पशुधन की तुलना में बहुत कम बायोमास उत्पन्न करता है। और इसमें से अधिकांश महासागरों या ताजे जल निकायों में डाल दिया जाता है, जिससे भारी जल प्रदूषण होता है।

  • लुप्तप्राय प्रजातियां: दुनिया में लुप्तप्राय जानवरों और पक्षियों की सभी प्रजातियों में से, लगभग 80% हमारे पशुधन उद्योग या जलीय कृषि उद्योग की वजह से खतरे में हैं।

माँसाहार के और भी कई नुकसान हैं, जैसे कि नॉन-वेज खाने से होने वाले स्वास्थ्य सम्बन्धी मसले, जानवरों पर होने वाली क्रूरता आदि। लेकिन हम इस लेख में यह सब चर्चा नहीं करेंगे।

उपसंहार

हम कह सकते हैं कि शाकाहारी जीवनशैली, मांसाहारी जीवन शैली की तुलना में बहुत बेहतर लगती है, कई विभिन्न दृष्टिकोणों से - नैतिक रूप से, स्वास्थ्य के लिहाज से, आदि। आइए संक्षेप में बताते हैं कि इस लेख में हमने क्या चर्चा की।

  • हम इंसान प्राकर्तिक रूप से मांसाहारी होने के बजाय, शायद शाकाहारी हैं।
  • कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारे पूर्वज क्या खाते थे, हमें अपनी सभ्यता में लगातार सुधार करने की आवश्यकता है। हममें से अधिकांश सहमत होंगे कि एक अहिंसक सभ्यता, हिंसक सभ्यता से बेहतर होती है।
  • हममें से ज्यादातर लोग स्वाद के लिए मांस खाते हैं, पोषक तत्वों के लिए नहीं। शाकाहारी भोजन सभी आवश्यक खनिज और विटामिन प्रदान कर सकता है।
  • अगर हममें से अधिकांश शाकाहारी भोजन करने लग जाएं, तो जानवरों में कोई जनसंख्या विस्फोट या हमारे लिए भोजन की कमी नहीं होगी।

लेकिन हम ऐसे समाज में रहते हैं जहाँ व्यक्तिगत स्वतंत्रता को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। हम सभी की पसंद और स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं। कोई भी व्यक्ति कुछ भी खा सकता है, जो वह चाहता है।

इसलिए, शाकाहारी भोजन किसी पर थोपा नहीं जा सकता है। इसके लिए प्रेरणा भीतर से आनी चाहिए।

हमें आशा करनी चाहिए कि एक दिन हमारी मानव सभ्यता इस हद तक विकसित हो जाएगी कि हम जानवरों की स्वतंत्रता और अधिकारों की भी इज़्ज़त करने लगेंगे।

कुछ वैज्ञानिकों ने हाल ही में प्रयोगशाला में मांस विकसित किया है। हो सकता है कि इस तरह की वैज्ञानिक उन्नति एक बहुत अच्छा समाधान साबित हो, और सदियों पुरानी इस बहस में दोनों पक्षों को संतुष्ट कर पाए।

भारतीय संस्कृति ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ (विश्व एक बड़ा परिवार है) में विश्वास करती है। संभवतः, हमारे आध्यात्मिक रूप से विकसित पूर्वज, इस परिवार में न केवल मनुष्य, बल्कि जानवर भी शामिल करते थे। इसीलिए भारतीय संस्कृति में शाकाहार को बेहतर माना गया|

लेकिन हमें याद रखना चाहिए; कोई भी पक्ष पूर्ण सही या पूर्ण गलत नहीं है। केवल अपेक्षाकृत सही और अपेक्षाकृत गलत हैं। इस दुनिया में सब कुछ सापेक्ष है!

अगर आपको लगता है कि हम कुछ चूक गए हैं, या आपके पास वेज या नॉन-वेज डाइट के पक्ष में कोई नया तर्क है, या आपको लगता है कि इस लेख में बताए गए किसी भी तर्क में कुछ खामी है, तो हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं।

Share on:
comments powered by Disqus