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कुंडलिनी क्या है और कुंडलिनी जागरण कैसे करें? (Kundalini kya hai aur Kundalini jagran kaise karein?)

कुण्डलिनी वो जीवनी शक्ति है जिसे कुण्डलिनी योग के योगिओं के अनुसार हर मनुष्य के मूलाधार चक्र में सुप्तावस्था में स्तिथ बताया जाता है| इसे अक्सर सर्पों से प्रदर्शित किया जाता है - जैसे के डॉक्टरों के चिंह में, या शिव जी के सर पर सर्प द्वारा, इत्यादि|

Kundalini Awakening

यह वह जीवनी शक्ति है जिसके बिना जीवन की गति संभव ही नहीं है| ज्यादातर लोगों में यह बहुत निम्न स्तर पर सक्रिय रहती है - मूलाधार चक्र में| और इस चक्र में रहने की वजह से ही मनुष्य भोजन, काम और अर्थ के पीछे भागता है|

कुण्डलिनी जीवन शक्ति है जिसके कई आयाम हैं, या यूँ कहें की इस शक्ति की कई परतें हैं| जैसे-जैसे इसकी परतें खुलती हैं, वैसे-वैसे शक्ति के और भी शक्तिशाली और सूक्ष्म आयाम सामने आते जाते हैं|

यह कर पाना सिर्फ मनुष्य के ही बस में है| जानवर हमेशा कुण्डलिनी जीवन शक्ति के निम्नतम आयाम पर ही काम करते हैं| पर मनुष्य अपने को उच्चतर आयामों में उठा सकता है| इसीलिए यह मनुष्य जीवन एक वरदान है| परन्तु ज्यादातर लोग इससे अनिभिज्ञ हैं - इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है|

कुण्डलिनी योग के माध्यम से इस शक्ति को ऊपर स्तिथ चक्रों तक लाया जाता है, जिससे चेतना में जबरदस्त वृद्धि होती है, और इंसान का चरित्र बेहतर होता चला जाता है| इसके अंतिम पड़ाव पर तो मुक्ति या परम चेतना में विलय होना अवश्यम्भावी बताया जाता है|

कुण्डलिनी योग करने वाले योगिओं के अनुसार तो मनुष्य जीवन का लक्ष्य ही कुण्डलिनी जागरण करना है| परन्तु यह इतना आसान नहीं है, और इस प्रक्रिया में नुक्सान होने की गुंजाइश भी रहती है| इस लेख में हम कुण्डलिनी योग के इन्ही विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालेंगे|

Table of Contents
  • कुंडलिनी जागरण के तरीके
  • कुण्डलिनी जागरण में कितना समय लगता है ?
  • कुंडलिनी जागरण के फायदे और नुकसान

कुंडलिनी जागरण के तरीके

वैसे तो कुण्डलिनी जागरण के कई तरीके हैं| आख़िरकार कुण्डलिनी जागरण और कुछ नहीं आपकी चेतना और शक्ति का भौगोलिक, स्थूल आयामों से आध्यात्मिक, सूक्ष्म आयामों की और एक सफर है| अतः, यह कई तरीको से हो सकता है, जैसे की :

  • भक्ति योग से - भजन-कीर्तन और मंत्रोच्चार करने वाले लोगों की भी कुण्डलिनी जागृत हो सकती है|

  • कर्म योग या ज्ञान योग से - अपना कर्म सच्चे मन और ईमानदारी से करने वाले और ईश्वर सम्बंधित चर्चा, लेख और किताबों में रूचि रखने वाले लोगों की भी कुण्डलिनी जागृत हो सकती है|

  • कुण्डलिनी पुराने जन्म के किये गए तप और कर्मों की वजह से, या किसी गुरु की कृपा से, या उनके द्वारा किये गए शक्तिपात से भी जागृत हो सकती है| अर्थार्थ अगर किसी मनुष्य की कुण्डलिनी जागृत हो चुकी है, तो वह अगर चाहे तो औरों की कुण्डलिनी भी जागृत कर सकता है|

परन्तु कुण्डलिनी जागृत करने का सबसे अच्छा तरीका कुण्डलिनी योग को ही माना जाता है| यह बनाया ही इसलिए गया है|

नोट

किसी गुरु से शक्तिपात करवाके कुंडली जाग्रत करवाना बहुत अच्छा विचार नहीं है| यह प्राकर्तिक तरीके से ही होने देना चाहिए|

जब प्रकर्ति को लगेगा आप तैयार हैं, तो वो खुद यह कर देगी| कुण्डलिनी शक्ति बहुत शक्तिशाली होती है, और इसको सँभालने के लिए आपको इसके लायक बनना पड़ेगा - शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, हर तरीके से| अगर आप तैयार नहीं हैं, और आपने अपनी कुण्डलिनी जागृत करवा ली, तो यह कदाचित नुक्सान भी कर सकती है|

वैसे तो अच्छे ज्ञानी गुरु उसकी पर शक्तिपात करते हैं, जो उनके अनुसार तैयार है, परन्तु फिर भी इस सब से बचें|

कुछ लोग कुण्डलिनी योग को तंत्र-मंत्र समझ लेते हैं| यह बिलकुल सच नहीं है| यह भारत के ऋषियों द्वारा बनायी गयी अनोखी योग पद्धिति है| पर इसको किसी अच्छे गुरु के सरक्षंण में ही करना चाहिए, जिन्हे कुण्डलिनी विज्ञान की अच्छे से समझ हो|

खुद भी करें तो बहुत अच्छे से पढ़ने के बाद, और बहुत शनै-शनै| कुछ भी गड़बड़ होता लगे तो रुक जाएं| इस लेख में हम आपको कुण्डलिनी योग से अवगत करवा देंगे| अगर आप चाहें तो आप इसका और गहराई में अध्ध्यन कर सकते हैं और बाद में संभवतः अभ्यास भी|

नोट

भारत के सनातन धर्म में ईश्वर प्राप्ति के कई तरीके सुझाये गए हैं| आजकल ज्यादातर लोग भक्ति योग को ही ज्यादा महत्त्व देते हैं - चाहे वो मूर्तिपूजा के रूप में हो, या क़ुरान या बाइबिल के रूप में|

भक्ति योग में किसी चीज़ पर अंध-विश्वास किया जाता है| परन्तु हर मनुष्य की प्रकर्ति अलग होती है| अतः, भारत के ऋषियों ने और भी योग सुझाये - हठ योग, कर्म योग, ज्ञान योग, कुण्डलिनी योग इत्यादि|

कुण्डलिनी योग एक तरह से योग की सबसे बेहतर वैज्ञानिक पद्धिति है, और मुझे यह काफी आकर्षक लगती है| मुझे भक्ति योग उतना समझ नहीं आता - कैसे लोग किसी मूर्ती या किताब पर अँधा विश्वास कर सकते हैं|

पर में समझ सकता हूँ की दुनिया में हर तरह के लोग हैं, और सबको अपनी इच्छानुसार ईश्वर अराधना करने का पूर्ण-अधिकार है|

आइये, अब कुण्डलिनी योग के बारे में जानें|

कुण्डलिनी जागरण की यौगिक विधि

कुण्डलिनी जागरण की यौगिक विधि को कुण्डिलिनी योग कहा जाता है|

वैसे कुण्डलिनी योग करने के कई तरीके हैं, पर हम आपको बहुत ही शुरूआती, पर प्रभावी तरीका बताएंगे| पर ध्यान रहे, इसको धीरे-धीरे करें, और इसको करने में लगाया गया समय भी धीरे-धीरे ही बढ़ाएं| शुरुआत में 15-20 मिनट भी बहुत होंगे| अगर कुछ भी दिक्कत लगे, या शरीर में हद से ज्यादा शक्ति प्रवाह महसूस होने लगे तो इसे करना कम कर दें या रोक दें|

यह भी जरूरी है की इसे शक्ति प्राप्ति, या संसार की भौतिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए न किया जाये| इसका उद्देश्य सिर्फ मुक्ति-प्राप्ति, ईश्वर-ज्ञान प्राप्ति या सिर्फ निच्छल जिज्ञासावश ही होना चाहिए जैसे वैज्ञानिक प्रयोगशाला में करते हैं|

कुण्डलिनी योग में दो क्रियाओं का बहुत महत्व है:

नाड़ी शुद्धि क्रियाएं

ऐसी कोई भी क्रियाएं जिससे आपकी नाड़ियाँ शुद्ध हों| यहाँ नाड़ियों का मतलब नसों से नहीं है| नाड़ियाँ शरीर में वो सूक्ष्म मार्ग होते हैं, जिसमें से हमारी जीवन-शक्ति प्रवाहित होती है| क्यूंकि कुण्डलिनी जागरण इसी जीवन शक्ति को प्रबल करता है, इसलिए कुण्डलिनी जगाने से पहले यह आवश्यक है की आपकी नाड़ियाँ निर्मल, और खुली हों|

आसन करने से भी नाड़ी शुद्धि होती है, और प्राणायाम करने से भी| मेने बचपन में आसन काफी किये थे, पर अब में सिर्फ प्राणायाम ही करता हूँ|

नाड़ी-शुद्धि हेतु कई प्राणायाम हैं, पर सबसे सरल अनुलोम-विलोम है| इसी से शुरुआत करें|

कुण्डलिनी जागरण क्रियाएं

कई क्रियाएं हैं जिससे कुण्डलिनी प्रभावित होती है और जागती है| इसमें दो बहुत मुख्य हैं:

  • त्राटक क्रिया - नेत्रों को किसी निश्चित वस्तु पर केंद्रित करें (जैसे कोई बिंदु, दीपक या मोमबत्ती की लौ)। उसे तब तक देखते रहें जब तक नेत्रों में पानी नहीं आ जाए या आपके नेत्र दर्द न करने लगें। ऐसा होने पर आँखों को बंद कर लें और फिर सामान्य हो जाने पर उन्हें खोलें।

    त्राटक क्रिया षट्कर्म का हिस्सा भी है| इससे सिर्फ नेत्र ही अच्छे नहीं होते, अपितु इससे मन पर पूरा आधिपत्य आ जाता है| और योग का मतलब ही मन पर नियंत्रण करना है| यह आपको ध्यान के लायक बनाएगा, जो हमारा अगला पड़ाव है|

  • शाम्भवी क्रिया - यह ध्यान लगाने की विधि है| पहले ज्ञान मुद्रा में बैठ जाएं, अर्थार्थ हाथों की पहली ऊँगली और अंघूठे को गोल आकार बनाते हुए मिला लें, और बची तीन अंगुलियों को सीधा रखें| इस मुद्रा में दोनों हाथों को घुटनों पर टिका दें। रीढ़ को सीधा रखते हुए, सिर को थोड़ा-सा ऊपर उठाकर, आंखों से भौंहों या दोनों आँखों के मध्य भाग (जहाँ शिवजी जा तीसरा नेत्र होता है) को देखते हुए आंखों को धीरे धीरे बंद करें। अब आपका ध्यान आँखों के मध्य भाग और श्वासों पर ही होना चाहिए। हो सके तो कुछ न सोचें, या ॐ का जाप करें, या जो भी आपका इष्ट देव हो|

इनके अलावा कई प्राणायाम भी हैं, जिनको साथ में करने से कुंडली जागरण में मदद मिलती है, जैसे की कपालभाति, कुम्भक इत्यादि|

इनसे शुरुआत करें| बहुत ज्यादा चीजें न करें| प्रक्रिया को सरल रखें| जब आपको कुछ असर मालुम पड़ने लगे, और आपको यकीन हो जाये की यह कुछ अलग चीज़ तो अवश्य है, तब किसी गुरु की खोज करके इसे और अच्छे से करने लगें|

इसके दो लाभ हैं:

  • क्यूंकि जब आपको इसका प्रभाव मालुम पड़ जायेगा, तो आपके संदेह भी कम होने लगेंगे और आपकी इसके बारे में जानने की इच्छा स्वतः ही और प्रबल हो जाएगी|
  • इसको कई महीने, निरंतर रूप से कर चुकने की वजह से आपकी नाड़ियाँ कुछ हद तक शुद्ध हो चुकी होंगी, और आपकी कुण्डलिनी भी सक्रिय हो रही होगी| उस अवस्था में कोई भी अच्छा गुरु आपको आगे का मार्ग दिखने के लिए ज्यादा उत्सुक होगा|
नोट

सद्गुरु के अनुसार कुण्डलिनी योग करने के 112 तरीके हैं| इन तरीको से हम शरीर में स्तिथ 112 ऊर्जा चक्रों और ऊर्जा के 7 आयामों को प्रभावित कर सकते हैं|

कुण्डलिनी योग सबसे शक्तिशाली योग है, और इसीलिए संभवतः सबसे ज्यादा जोखिम भरा भी| इसलिए इसके लिए बहुत ही योग्य, धीरजपूर्ण और निच्छल मन का मनुष्य चाहिए, और कोई ऐसा गुरु जिसपर पूर्ण विश्वास करके आगे बढ़ा जा सके| यह भरोसा अंध भरोसा नहीं, अपितु एक विज्ञान की प्रयोगशाला में अपने अध्यापक पर किये गए भरोसे जैसा होना चाहिए|

कुण्डलिनी जागरण में कितना समय लगता है ?

कुण्डलिनी जागरण की कोई समय सीमा नहीं है| यह बहुत बातों पर निर्भर कर सकता है - आप कैसे इंसान हैं (धूर्त, या सरल), आपने कैसे कर्म किये हैं, आप कैसे योग कर रहे हैं, किसी दक्ष गुरु के सानिध्य में, या खुद ही, इत्यादि|

जब मेने इसे करना शुरू किया, तो मुझे 1-2 महीने में कुछ अलग सा महसूस होने लगा| ध्यान करते हुए सर में ठंडा-ठंडा सा लगता था, हाथों और पैरों में ऊर्जा प्रवाह सा होता था, नेत्रों के बीच में झनझनाहट सी होती थी, और ध्यान करते हुए कभी-कभी एक सफ़ेद सा प्रकाश दिखता था|

पर नौकरी करते हुए, योगाभ्यास लगातार करना बेहद कठिन होता है, और मेरा अभ्यास छूट गया| पर मेने इसे कई सालों बाद फिर से शुरू किया है|

वैसे कुण्डलिनी जागरण के अपने अनुभवों की ज्यादा बात नहीं करनी चाहिए, क्यूंकि अगर आप इसमें सफल हो रहे हैं तो आपमें इसका दंभ भी आ सकता है, और आपका मन लोगों को यह बताने को विचलित हो सकता है की आप कितने महान योगी हैं| ऐसा दंभ योगाभ्यास में ज़हर समान है| योगी को कभी अहंकारी नहीं होना चाहिए| न ही सिद्धियों का लालच होना चाहिए|

योगी को धैर्यशील भी होना चाहिए| इसलिए यह प्रश्न ही गलत है की कुण्डलिनी जागरण में कितना समय लगेगा| प्रक्रिया का मज़ा लें, फल की इच्छा न करें| अगर हमारा जन्म ही इसी उद्देश्य हेतु हुआ है, तो यह काम आसान तो कदापि नहीं होगा| इसमें समय लगेगा ही लगेगा - 1 साल, 10 साल, या 30 साल, कोई नहीं कह सकता|

कुछ लोगों के अनुसार यह इस बात पर भी निर्भर करता है की आपने अपने पिछले जन्मों में योग्याभ्यास किया है की नहीं| यह शायद इसलिए है, क्यूंकि एक जन्म से दुसरे जन्म हम सिर्फ अपनी आत्मा को ही ले जाते हैं, और योग आपकी आत्मा और मन दोनों को प्रभावित करता है| अगर आप पुनर्जन्म को नहीं मानते, तो आपको यह सब सुनने में शायद थोड़ा अटपटा लगे| पर यहाँ हमारा उद्देश्य बस आप तक योगियों और इस दर्शन के ज्ञान को पहुंचाना भर है|

कुंडलिनी जागरण के फायदे और नुकसान

कुंडली जागरण के फायदे तो अनेक हैं - शायद यह हमारे जीवन का परम उद्देश्य है| तो इससे ज्यादा और क्या फायदा हो सकता है| और किसी फायदे के लिए तो यह करना भी नहीं चाहिए| अतः, इस बारे में बात करना बेमानी है|

हाँ अगर गलत तरीके से, गलत भावना से और गलत उद्देश्य हेतु यह किया जाये तो नुक्सान अवश्य हो सकता है|

कुण्डलिनी योग से जो ऊर्जा निकलती है, उसका प्रवाह बाध्य होगा तो आपको तकलीफ होगी| मान लीजिये आपने अच्छे से कभी आसन या प्राणायाम नहीं किया है, और आपकी नाड़ियाँ पूर्णतः शुद्ध नहीं हैं, और अवरोधित हैं, तो ऊर्जा के प्रवाह में अड़चनें आयेंगी|

इन सब परेशानियों को कुण्डलिनी इफ़ेक्ट (Kundalini Effect) का नाम दिया गया है| इसके बारे में, मैं अलग से एक लेख प्रकाशित करूँगा|

उसी तरह से अगर आप भावनात्मक रूप से या मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं, तो भी आपको परेशानी आएंगी| कुण्डलिनी योग करते हुए हमारा मन भी बदलता है - कुछ को शुरुआत में कामिच्छायें बढ़ती हुई महसूस होती हैं, हो सकता है कुछ समय बाद आपका मन कहीं भी लगना बंद हो जाये, आपके जीवन से मोह-प्रेम ख़त्म होने लगे, परिवार भी पराया लगने लगे, इत्यादि| आप समझ सकते हैं, ऐसा उम्र के गलत पड़ाव पर हुआ, जब आप तैयार नहीं हैं इस सब के लिए, तो आपके संबंधों, नौकरी, परिवार पर क्या असर पड़ेगा|

इस योग को करने से आप तपस्वी और सन्यासी बन जाएंगे| आपका मन दुनिया की आलतू-फ़ालतू चीज़ों में लगना ही बंद हो जायेगा| न कुछ अच्छा खाने के लिए मन ललचाएगा, न कामवासना होगी, न किसी और भौतिक वस्तु पाने के लिए आप लार टपकायेंगे| अब आप ही बता सकते हैं की ऐसा हुआ तो आपके लिए अच्छा होगा या बुरा|

अंत में, मैं बस यही कहना चाहूंगा की कुण्डलिनी योग विजेताओं के लिए है, सच्चे महा पुरुषों के लिए| यह उनके लिए शायद नहीं है जो संसार के दुखों को भुलाने के लिए ईश्वर की शरण में जाते हैं| यह योग के वैज्ञानिकों के लिए है, जो ईश्वर और सच्चाई की खोज करना पसंद करते हैं| किसी को भी ईश्वर और मसीहा मानकर जिनको संतुष्टि नहीं मिलती|

यह वो लोग हैं जो ईश्वर को तब मानेंगे जब उसका अनुभव करेंगे| जो लोग ईश्वर से डरते नहीं, शायद उसे पूजते भी नहीं, पर उसे जानना अवश्य चाहते हैं| जो खुद को जानना चाहते हैं|

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