लग्न कुंडली कैसे पढ़े ? (Lagna kundali kaise padhte hein ?)
अपने पिछले लेख में, हमने पहले ही ज्योतिष और कुंडली के मूल सिद्धांतों का विवरण दिया है। यदि आपने वह लेख नहीं पढ़ा है, तो आप उसे यहाँ जाकर पढ़ सकते हैं।
लेकिन फिर भी, हम यहां एक बार फिर से लग्न कुंडली की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणाओं का पुनरावलोकन करने जा रहे हैं। क्यूंकि इस लेख में, हम लग्न कुंडली के पठन और व्याख्या में बहुत गहराई से जाने वाले हैं।
ज्योतिष में विभिन्न चार्ट का उपयोग किया जाता है:
- लग्न चार्ट (लग्न कुंडली) या जन्म कुंडली - यह सबसे महत्वपूर्ण चार्ट है, और अन्य सभी चार्ट, इस चार्ट का उपयोग करके ही बनाए जाते हैं। लग्न कुंडली में, आप कुंडली के पहले घर में लग्न (या लₒ) लिखा हुआ देखेंगे।
- नवमांश कुंडली (नवमांश कुण्डली) - इस चार्ट का उपयोग किसी व्यक्ति के जीवन के अधिक गहन विश्लेषण के लिए किया जाता है। जबकि लग्न चार्ट विभिन्न ग्रहों, सूर्य और चंद्रमा की स्थिति को दर्शाता है, नवांश चार्ट में हम उनकी ताकत का पता लगा सकते हैं।
- चंद्र कुंडली (चंद्र कुंडली) - यह चंद्रमा की स्थिति पर आधारित है।
- चलित चार्ट (चलित कुण्डली)
- लग्न कुंडली क्या है ?
- कुंडली के घरों और राशियों के बीच संबंध
- कुंडली के घरों और ग्रहों के बीच संबंध
- ग्रहों के बीच संबंध
- राशियों और ग्रहों के बीच संबंध
- कुछ उदाहरण
- केस अध्ययन
लग्न कुंडली क्या है ?
लग्न कुंडली किसी व्यक्ति के जन्म के समय ग्रहों की स्थिति का लेखा-जोखा है।
लग्न कुंडली मूल रूप से एक ऐसा चार्ट है जिसमें 12 समचतुर्भुज के आकार के खंड होते हैं, जिन्हें घर कहा जाता है। इसे नीचे दर्शाया गया है:
चार्ट में पहला घर शीर्ष-केंद्र खंड है। शेष घरों को घड़ी की विपरीत दिशा में ज़िक-ज़ैग तरीके से क्रमांकित किया जाता है (जैसा कि ऊपर दिए गए चार्ट में दिखाया गया है)।
कुंडली के 12 घरों का विवरण
लग्न चार्ट के बारह घरों (खाने या भाव) में से प्रत्येक घर व्यक्ति के जीवन के कुछ विशेष पहलुओं को दर्शाता है। आइए जानें कि ये घर क्या दर्शाते हैं।
- भाव 1 - यह व्यक्ति के व्यक्तित्व, स्वभाव और रूप-रंग के बारे में बताता है।
- भाव 2 - यह व्यक्ति के वित्त, आवाज और प्रारंभिक शिक्षा के बारे में बताता है।
- भाव 3 - यह व्यक्ति के छोटे भाई-बहनों, साहस, सहनशक्ति के बारे में बताता है।
- भाव 4 - यह सुख का घर है, यानि ऐसी चीजें जो हमारे जीवन में खुशियां लाती हैं, जैसे हमारी माँ, संपत्ति, वाहन, आदि।
- भाव 5 - यह हमें हमारी उच्च शिक्षा, प्रेम, बच्चों, आदि के बारे में सुराग देता है।
- भाव 6 - यह रोगों, शत्रुओं, प्रतिस्पर्धा, आदि का घर है।
- भाव 7 - यह विवाह, या किसी के साथ साझेदारी का घर है।
- भाव 8 - यह हमें हमारे जीवन में अचानक घटित होने वाली घटनाओं का संकेत देता है।
- भाव 9 - यह भाव अध्यात्म, भाग्य, गुरु/शिक्षक और लंबी दूरी की यात्राओं का होता है।
- भाव 10 - यह हमारे कर्म का भाव है। यह हमें किसी व्यक्ति के पेशे और उसके पिता के बारे में सुराग देता है।
- भाव 11 - यह लाभ, आय, उपलब्धियों का भाव है। यह हमें हमारे बड़े भाई-बहनों और दोस्तों के बारे में भी सुराग देता है।
- भाव 12 - यह हानि, व्यय, विदेश यात्रा और अन्य देशों में बसने आदि का भाव है।
भाव 6, 8 और 12 को नकारात्मक भाव माना जाता है (क्योंकि वे हमारे जीवन के कई नकारात्मक पहलुओं से संबंधित हैं)। लेकिन इन घरों से भी कुछ सकारात्मक पहलु जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए भाव 12 का संबंध विदेश यात्रा से है, भाव 8 का संबंध गहन शोध से है, और भाव 6 का संबंध प्रतियोगिता में सफलता से है।
कुंडली के घरों और राशियों के बीच संबंध
हम जानते हैं कि 12 राशियां होती हैं। विभिन्न राशियों को सौंपी गई संख्याएँ हैं:
- मेष - 1
- वृष - 2
- मिथुन - 3
- कर्क - 4
- सिंह - 5
- कन्या - 6
- तुला - 7
- वृश्चिक - 8
- धनु - 9
- मकर - 10
- कुम्भ - 11
- मीन - 12
लग्न कुंडली के प्रत्येक भाव में एक राशि का वास होगा।
लग्न कुण्डली के प्रथम भाव में लग्न राशि होगी. और अन्य सभी राशियों को उसके सापेक्ष आरोही क्रम में रखा जाता है।
उदाहरण के लिए, यदि कर्क (अर्थात 4) किसी व्यक्ति का लग्न है और इसलिए यह पहले घर में है, तो हम सिंह (अर्थात 5) को दूसरे घर में, कन्या (अर्थात 6) को तीसरे घर में, और इसी तरह बाकी राशिओं को आगे के घरों में रखेंगे।
पूरी राशि पट्टी 12 राशियों (जैसे सिंह, वृश्चिक, तुला, आदि) से बनी है और प्रत्येक राशि को पूर्वी क्षितिज पर उगने में 2 घंटे का समय लगता है। आपके जन्म के समय जो राशि पूर्वी क्षितिज पर उदित हो रही थी वह आपका लग्न होगी। इसे पहले घर में रखा जाएगा।
कृपया राशियों की संख्या के साथ घर के नंबरों को भ्रमित न करें। जरूरी नहीं कि वे समान हों।
प्रत्येक राशि का अपना विशिष्ट स्वभाव और चरित्र होता है। अतः, यह उस घर को प्रभावित करेगी जिसमें वह विराजमान है।
उत्तर-भारतीय कुंडली में घरों की स्थिति समान रहती है, लेकिन राशियों की स्थिति बदल सकती है। वहीं दूसरी ओर दक्षिण भारतीय कुंडली में राशियों की स्थिति समान रहती है, लेकिन घरों की स्थिति बदल सकती है।
यहां, हम केवल उत्तर-भारतीय कुंडली का अध्ययन करेंगे।
कुंडली के घरों और ग्रहों के बीच संबंध
लग्न चार्ट के प्रत्येक घर में हमेशा एक राशि होती है। हालांकि, किसी विशेष घर में 0, 1 या अधिक ग्रह हो सकते हैं।
नौ ग्रह हैं - सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु। प्रत्येक ग्रह की अपनी प्रकृति होती है, और जिस घर में वे रहते हैं, उस पर उस विशेष तरीके से प्रभाव डालते हैं।
ग्रहों की प्रकृति के कुछ आयाम नीचे दिए गए हैं:
- सौम्य और क्रूर - उदाहरण के लिए, चंद्रमा, बृहस्पति, शुक्र सौम्य ग्रह हैं, जबकि सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु क्रूर गृह माने जाते हैं।
- उच्च और नीच - ये ग्रह उच्च अवस्था में हो सकते हैं, या नीच अवस्था में हो सकते हैं। यदि कोई ग्रह उच्च स्थिति में है, तो यह अच्छे परिणाम देगा (सामान्य रूप से ज्यादा)। नीच की स्थिति में ग्रह बुरे परिणाम देते हैं (सामान्य रूप से ज्यादा)।
- ग्रह की डिग्री (या अंश) - आपकी कुंडली में प्रत्येक ग्रह की एक निश्चित डिग्री होगी, 0° और 30° के बीच में कुछ।
किसी ग्रह की डिग्री उस ग्रह की आयु को दर्शाती है।
- 0° से 6° किसी ग्रह की बाल्यावस्था को दर्शाती है, और इस अवस्था में कोई ग्रह अपने इच्छित परिणाम का केवल 25% ही देगा।
- 6° से 12° ग्रह की युवा अवस्था को दर्शाती है, और इस अवस्था में कोई ग्रह अपने इच्छित परिणाम का केवल 50% ही देगा।
- 12° से 18° ग्रह की वयस्क अवस्था (पूर्ण यौवन) को दर्शाती है, और इस अवस्था में ग्रह अपने इच्छित परिणाम का 100% देगा।
- 18° से 24° किसी ग्रह की परिपक्व अवस्था (प्रौढ़ अवस्था) को दर्शाती है, और इस अवस्था में कोई ग्रह अपने इच्छित परिणाम का केवल 50% ही देगा।
- 24° से 30° किसी ग्रह की वृद्धावस्था को दर्शाती है, और इस अवस्था में कोई ग्रह अपने इच्छित परिणाम का केवल 25% ही देगा।
- वास्तव में, कई विशेषज्ञों के अनुसार यदि कोई ग्रह 0°-2° के बीच या 29°-30° के बीच में है, तो यह अपने इच्छित परिणाम का 0% देगा, यानि कुछ परिणाम नहीं देगा।
किसी गृह की उच्च स्तिथि और नीच स्तिथि से सम्बंधित नियम इस प्रकार हैं:
- सूर्य यदि मेष राशि, यानि राशि 1 में हो तो उच्च अवस्था में होता है। यह तुला राशि, यानी राशि 7 में नीच अवस्था में रहेगा।
- चन्द्रमा यदि वृष राशि, अर्थात राशि 2 में हो तो उच्च अवस्था में होता है। यह वृश्चिक राशि में नीच अवस्था में होगा, अर्थात राशि 8 में|
- राहु यदि वृष, या मिथुन राशियों, अर्थात राशि 2 या 3 में हो तो उच्च अवस्था में होता है। यह वृश्चिक या धनु राशियों में नीच अवस्था में होगा, अर्थात राशि संख्या 8 या 9 में।
- गुरु यदि कर्क राशि, यानि राशि 4 में हो तो उच्च अवस्था में होता है। यह मकर राशि, यानी राशि 10 में नीच अवस्था में होगा।
- बुध यदि कन्या राशि, यानि राशि 6 में हो तो उच्च अवस्था में होता है। यह मीन राशि में, अर्थात राशि 12 में नीच की स्थिति में रहेगा।
- शनि यदि तुला राशि में, यानि राशि 7 में हो तो उच्च अवस्था में होता है। मेष राशि, यानी राशि 1 में यह नीच अवस्था में होगा।
- केतु यदि वृश्चिक या धनु राशियों में है, अर्थात राशि 8 या 9 में है, तो यह उच्च अवस्था में होता है। वृष, या मिथुन राशियों में, अर्थात राशि संख्या 2 या 3 में यह नीच अवस्था में होगा।
- मंगल यदि मकर राशि में, यानि राशि 10 नंबर में हो तो उच्च अवस्था में होता है। कर्क राशि, यानी राशि 4 में यह नीच अवस्था में होगा।
- शुक्र यदि मीन राशि में, यानि राशि 12 में हो तो उच्च अवस्था में होता है। कन्या राशि में, अर्थात राशि 6 में यह नीच की अवस्था में होगा।
यदि कोई ग्रह राशि x में उच्च अवस्था में है, तो वह राशि x+6 में नीच अवस्था में होगा, अर्थात पहले वाली से 7वीं राशि में।
सिंह या कुम्भ राशियों में, अर्थात राशि संख्या 5 या 11 में कोई भी ग्रह उच्च अवस्था में नहीं होता है।
एक ग्रह न केवल उस घर को प्रभावित करता है जिसमें वह है, यह उन घरों को भी प्रभावित करता है जिन पर उसकी नजर है (यानी जिन घरों पर वह अपनी दृष्टि रखता है)। यह दृष्टि शुभ या अशुभ हो सकती है।
विभिन्न ग्रहों की दृष्टि से संबंधित नियम इस प्रकार हैं:
- सभी ग्रह जिस भाव में विराजमान होते हैं, उस भाव से सप्तम भाव पर दृष्टि डालते हैं (गणना करते समय हम उस भाव से शुरू करते हैं जिसमें वह ग्रह बैठा होता है)।
- मंगल जिस भाव में बैठा है, उससे चौथे और आठवें भाव को भी देखता है।
- बृहस्पति जिस भाव में बैठा है, उससे 5वें और 9वें भाव को भी देखता है।
- शनि जिस भाव में बैठा है, उससे तीसरे और दसवें भाव को भी देखता है।
- राहु और केतु भी जिस भाव में बैठे हैं, उससे 5वें और 9वें भाव को देखते हैं।
आप कई ऑनलाइन कुंडली बनाने वाले सॉफ्टवेयर का उपयोग करके अपनी कुंडली मुफ्त में बनवा सकते हैं। आपको बस अपना नाम, जन्म तिथि, जन्म का समय और जन्म स्थान प्रदान करना होगा। इनमें से कुछ आपको ग्रहों की डिग्री का विवरण भी प्रदान कर सकते हैं, कुछ नहीं। आपको थोड़ा एक्सप्लोर करना पड़ सकता है।
ग्रहों के बीच संबंध
कुंडली में ग्रहों का एक दूसरे पर भी प्रभाव पड़ता है। वे अपने स्वभाव और लग्न चार्ट में अपनी स्थिति के आधार पर मित्र, शत्रु या तटस्थ हो सकते हैं।
इन ग्रहों को देव ग्रह माना जाता है: सूर्य, चंद्रमा, मंगल, और बृहस्पति। ये सभी ग्रह आपस में बहुत मित्रवत हैं।
इन ग्रहों को दानव ग्रह माना जाता है: शुक्र, शनि, राहु और केतु। ये सभी ग्रह आपस में बहुत मित्रवत हैं।
हालाँकि, देव ग्रह दानव ग्रहों के शत्रु होते हैं। उदाहरण के लिए, मंगल राहु का शत्रु ग्रह होगा, शुक्र बृहस्पति का शत्रु ग्रह होगा, आदि।
कुछ मामलों में, वे तटस्थ हो सकते हैं, लेकिन वे कभी दोस्त नहीं बनेंगे। उदाहरण के लिए, मंगल हमारे शरीर का प्रतिनिधित्व करता है और शुक्र हमारी सम्भोग-क्रिया का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए, उन्हें एक-दूसरे के प्रति तटस्थ माना जा सकता है। इसी तरह, बृहस्पति (ज्ञान का प्रतिनिधित्व करने वाला) और शनि (अनुसंधान और न्याय का प्रतिनिधित्व करने वाले) एक दूसरे के तटस्थ हैं।
बुध इन सबके कहीं बीच में स्थित है, और अधिकांश अन्य ग्रहों के साथ अच्छे संबंध रखता है। यह सभी दानव ग्रहों के साथ-साथ बृहस्पति और सूर्य का मित्र है। हालांकि, यह चंद्रमा और मंगल का शत्रु है। बुध हमारे ज्ञान, स्मृति, आवाज का प्रतिनिधित्व करता है।
यदि दो या दो से अधिक ग्रह आपस में कोई संबंध रखते हैं, तो इसे युति कहते हैं। शत्रु ग्रह से युति नकारात्मक परिणाम देगी, जबकि मित्र ग्रह के साथ यह सकारात्मक परिणाम देगी।
इन सबके अलावा, कुछ अच्छे और बुरे योग भी होते हैं जो विभिन्न ग्रहों की स्थिति के आधार पर कुंडली में बनते हैं। हमें इनके बारे में भी पता होना चाहिए, जैसे की राजयोग (वे विभिन्न प्रकार के होते हैं), अंगारक योग, आदि।
राशियों और ग्रहों के बीच संबंध
ग्रहों का संबंध राशियों से भी होता है। सभी ग्रह (राहु और केतु को छोड़कर) एक या दो राशियों के स्वामी होते हैं।
- सूर्य - यह सिंह राशि का स्वामी है
- चंद्र - यह कर्क राशि का स्वामी होता है
- मंगल - यह मेष और वृश्चिक राशियों का स्वामी है
- बुध - यह मिथुन और कन्या राशियों का स्वामी है
- बृहस्पति - यह धनु और मीन राशियों का स्वामी है
- शुक्र - यह वृष और तुला राशियों का स्वामी है
- शनि - यह मकर और कुंभ राशियों का स्वामी है
हम पहले से ही जानते हैं कि प्रथम भाव की राशि लग्न राशि कहलाती है। इसके अलावा, जिस राशि में चंद्रमा होता है, उसे चंद्र राशि कहा जाता है। और जिस राशि में सूर्य होता है, वह सूर्य राशि कहलाती है।
अब, कुछ नियम हैं जिन्हें आपको अवश्य जानना चाहिए:
नियम 1
जो ग्रह आपकी लग्न राशि का स्वामी है (वो लग्नेश कहलाता है) , वह हमेशा आपके अनुकूल होता है। यह आपको हमेशा अच्छे परिणाम देगा, चाहे वह कहीं भी बैठे, जिस घर पर यह शासन करता है, और जहां भी वह अपनी दृष्टि रखता है। उदाहरण के लिए, यदि आपकी कुंडली के पहले घर को नियंत्रित करने वाली राशि कर्क है, तो इसका मतलब है कि चंद्रमा आपका लग्नेश है और वह हमेशा आपके लिए अनुकूल रहेगा।
जो ग्रह आपके लग्नेश के शत्रु हैं, वे आपके प्रतिकूल (मारक) होंगे और आपको अशुभ फल देंगे। चूंकि चंद्रमा एक देव ग्रह है, सभी दानव ग्रह (शुक्र, शनि, राहु, केतु) आपके शत्रु होंगे, और जहां भी वे बैठते हैं, या जहाँ प्रभाव डालते हैं, वहां वे बुरे परिणाम देंगे। हालांकि, अगर उनमें से कुछ सभी सकारात्मक घरों में बैठे हैं, तो वे तटस्थ व्यवहार कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, भले ही शनि आपका शत्रु ग्रह हो, लेकिन अगर वो 10 और 11 घरों में बैठा हो, जो दोनों सकारात्मक घर हैं, तो यह आपको बहुत बुरा परिणाम नहीं देगा। यह एक तरह से तथस्त होगा। आप इसे एक ऐसे मंत्री के रूप में सोच सकते हैं, जो सरकार के खिलाफ है, लेकिन दो अच्छे मंत्रालय मिलने के कारण संतुष्ट है और सरकार के खिलाफ काम नहीं करेगा।
इसी प्रकार, नकारात्मक भाव में बैठा मित्र ग्रह (योगकारक ग्रह) भी आपको कुछ बुरे परिणाम दे सकता है। अपनी ही पार्टी के एक मंत्री की कल्पना करें, जो उसको दिए गए मंत्रालय से खुश नहीं है।
तो, आपको अच्छे परिणाम तभी मिलेंगे जब एक सकारात्मक घर (यानी 1, 2, 4, 5, 7, 9, 10, 11) में कोई मित्र ग्रह बैठा हो। आपको अनुकूल ग्रह + सकारात्मक घर के जोड़े की आवश्यकता है।
यदि आपकी कुण्डली में कोई ग्रह उच्च अवस्था में है, तो वह आपके लग्नेश का शत्रु होने पर भी शुभ फल देगा। इसी प्रकार, यदि कोई ग्रह नीच अवस्था में है तो वह आपके लग्नेश के मित्र ग्रह होने पर भी अशुभ फल देगा।
नियम 2
यदि आपकी लग्न राशि का स्वामी ग्रह (जिसे लग्नेश कहा जाता है) नकारात्मक भाव (अर्थात 6, 8 या 12) में भी बैठा हो, तो भी वह नकारात्मक परिणाम नहीं देगा। उदाहरण के लिए, यदि वृश्चिक राशि आपका लग्न है, तो इसका मतलब है कि आपकी कुंडली का पहला भाव मंगल द्वारा शासित है। मंगल मेष राशि का स्वामी भी है, जो कि छठे भाव को भी संभालेगा। तो, आप अपने जीवन में छठे भाव से संबंधित कोई भी बुरा परिणाम नहीं देखेंगे। आपका लग्नेश आपके जीवन के उस पहलू का ख्याल रखेगा।
नियम 3
घर 1, 5 और 9 त्रिकोणीय घर कहलाते हैं। कोई ग्रह जो किसी त्रिभुज भाव में स्तिथ राशि का स्वामी है, वह अगर किसी नकारात्मक भाव का स्वामी भी है, तो भी वह नकारात्मक परिणाम नहीं देगा। उदाहरण के लिए, यदि धनु नौवें घर में है और इसलिए मीन बारहवें घर में है (दोनों पर बृहस्पति का शासन है), तो आपको 12वें घर के नकारात्मक परिणाम नहीं मिलेंगे।
केंद्रीय घर (यानी 1, 4, 7, 10) और त्रिकोणीय घर (यानी 1, 5, 9) को शक्तिशाली घर माना जाता है, क्योंकि वे हमारे जीवन के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं को नियंत्रित करते हैं।
इस समय आपके जीवन में जिस ग्रह की महादशा चल रही है, उसका प्रभाव आपके जीवन पर सबसे अधिक पड़ेगा। दूसरा सबसे अधिक प्रभाव उस ग्रह का होगा जिसकी अंतर्दशा चल रही है।
जब किसी अनुकूल ग्रह की महादशा या अंतर्दशा आती है, तो आपको अपने जीवन में कई अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे (यदि वह ग्रह सकारात्मक भाव में बैठा हो)। प्रतिकूल ग्रहों (या नकारात्मक भावों में बैठे अनुकूल ग्रह) की महादशा या अंतर्दशा आपको बुरे परिणाम देगी।
ऊपर बताए गए नियम सिर्फ सामान्य नियम हैं। उपरोक्त नियमों के कई अपवाद हैं, कई राजयोग, और विप्रीत राजयोग जो किसी कुंडली में बनते हैं। परन्तु, हम इस लेख में इन्हें शामिल नहीं करेंगे। यहां हमारा ध्यान केवल लग्न कुंडली पढ़ने के मूल नियमों को सीखने पर है।
अब, हम लग्न कुंडली की मूल बातें जानते हैं। यह अभ्यास करने का समय है, कुछ उदाहरण देखकर।
कुछ उदाहरण
हम अभी पूरी कुंडलियों की व्याख्या शुरू नहीं करेंगे। लेकिन हम कुंडली के कुछ छोटे पहलुओं पर एक नज़र डालेंगे, और इसके अर्थ को समझने की कोशिश करेंगे।
यदि बुध मिथुन या कन्या राशि से शासित घर में है, अर्थात बुध ग्रह अपने ही घर में है, तो इसका मतलब यह होगा कि वह व्यक्ति बोलने में बहुत अच्छा होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि बुध हमें बोलने का अच्छा कौशल देता है। यदि बुध का अंश 12° से 18° के बीच हो तो यह प्रभाव और भी अधिक होगा। यदि किसी कुण्डली का लग्न मिथुन या कन्या हो (अर्थात् वह प्रथम भाव में बैठे हों), और बुध भी उस घर में हो, तो यह प्रभाव बहुत अधिक होता है।
यदि कुण्डली के पहले भाव में कर्क राशि बैठी हो तो इसका अर्थ है कि चन्द्रमा उस कुण्डली का मुख्य स्वामी ग्रह है| कर्क राशि में मंगल नीच अवस्था में होता है। अतः ऐसी कुण्डली में मंगल पहले घर में है, तो वह अशुभ फल देगा, भले ही वह चन्द्रमा का मित्र ग्रह हो। हालांकि, कुछ योग ऐसे हैं जो नीच की स्थिति को बेअसर करते हैं, और यहां तक कि उस ग्रह को सकारात्मक परिणाम देने पर विवश भी कर देते हैं, जैसे की नीचभंग राजयोग। हम इन विशेष मामलों और सामान्य नियमों के अपवादों को अन्य लेखों में पढ़ेंगे।
केस अध्ययन (Case Study)
आइए एक उदाहरण पर विचार करें। यहां एक व्यक्ति की कुंडली दी गई है, जिसका जन्म 18 अगस्त, 1983 को सुबह 4:45 बजे मेरठ (UP) में हुआ था।
उपरोक्त चार्ट में Su सूर्य के लिए, चंद्रमा के लिए Mo, मंगल के लिए Ma, बुध के लिए Me, बृहस्पति के लिए Ju, शुक्र के लिए Ve, शनि के लिए Sa, राहु के लिए Ra और केतु के लिए Ke लिखा गया है।
कुछ कुंडली जनरेटर सॉफ्टवेयर तीन अतिरिक्त ग्रह दिखाते हैं - यूरेनस (Uranus, Ur), नेपच्यून (Neptune, Ne) और प्लूटो (Pluto, Pl)। परन्तु, आप अधिकांश व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए उन्हें अनदेखा कर सकते हैं। ऊपर दी गई कुंडली निम्नलिखित ऑनलाइन कुंडली सॉफ्टवेयर का उपयोग करके बनाई गई है - Astrosage
आइए, अब इस कुंडली का विश्लेषण करते हैं।
कुंडली के विभिन्न घर किस राशि और ग्रह द्वारा शासित है?
क्या आप उपरोक्त कुंडली के विभिन्न घरों में राशियों को इंगित कर सकते हैं, और संभवत: उन राशियों के स्वामी ग्रहों को भी ?
इसे यहाँ दर्शाया गया हैं:
तो, कर्क राशि, जो पहले घर में बैठी है, इस कुंडली का लग्न है। कर्क राशि के स्वामी चंद्र ग्रह हैं, और इस कारण इन्हें इस कुण्डली का लंगेश कहा जाएगा|
ग्रहों की स्थिति और उनकी शक्ति
अब, क्या आप विभिन्न ग्रहों और उनकी डिग्री को भी देख सकते हैं?
आप ऊपर दी गई कुंडली में देख सकते हैं कि:
- सूर्य की डिग्री 0° है, और चंद्रमा, बुध, केतु और राहु की 28°। तो, ये ग्रह लगभग अप्रभावी होंगे, यानी ये लगभग 0% परिणाम देंगे।
- शनि की डिग्री 5° है, और इसलिए यह अपने इच्छित परिणाम का 25% देगा।
- मंगल की डिग्री 9° हैं, और बृहस्पति की डिग्री 8° हैं, और इसलिए वे अपने इच्छित परिणाम का 50% देंगे।
- शुक्र की डिग्री 12° है, और इसलिए यह अपने इच्छित परिणाम का 100% देगा।
यदि आपकी कुंडली में मित्र ग्रह की डिग्री बहुत कम है, अर्थात वह कमजोर है, तो यह एक कमजोर मित्र होने के समान है - वह चाहकर भी आपका भला नहीं कर पाएगा।
हालांकि, अगर आपकी कुंडली में किसी शत्रु ग्रह की डिग्री बहुत कम है, यानी वो कमजोर है, तो यह आपके लिए अच्छा है। वह उतना नुकसान नहीं कर पाएगा जितना कि अन्यथा करता।
लेकिन आप ग्रहों की ताकत को प्रभावित कर सकते हैं। क्या आपने लोगों को तरह-तरह के रत्न/पत्थर पहने देखा है?
आप विभिन्न ग्रहों के लिए विभिन्न रत्न धारण कर सकते हैं, और अपने जीवन पर उनके प्रभाव को बढ़ा सकते हैं। उदाहरण के लिए, लोग चंद्र ग्रह के लिए सफेद मोती पहनते हैं। हालांकि कई अन्य विधियां भी हैं, जैसे की विभिन्न अनुष्ठान, मंत्र, आदि।
परन्तु, इसे हमेशा किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी की देखरेख में और गहन शोध के बाद ही करना चाहिए। आपके जीवन के गलत चरण में गलत ग्रह को मजबूत करने से प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
ग्रहों की दृष्टि
अगली बात जो हमें जानने की जरूरत है, वह है विभिन्न ग्रहों की दृष्टि। हम जानते हैं कि प्रत्येक ग्रह न केवल उस घर को प्रभावित करता है जिसमें वह बैठता है, बल्कि उस घर को भी प्रभावित करता है जहां उसकी दृष्टि होती है।
उपरोक्त कुंडली में विभिन्न ग्रहों की दृष्टि को नीचे दर्शाया गया है:
सभी ग्रह जिस भाव में बैठे होते हैं, उससे सप्तम भाव पर दृष्टि रखते हैं (गणना करते समय हम उस भाव से शुरू करते हैं, जिसमें वह ग्रह बैठा होता है)। अर्थात्, वे अपने से ठीक विपरीत घर पर अपनी दृष्टि रखते हैं, जैसा कि नीचे दिखाया गया है।
मंगल जिस घर में बैठा होता है, उससे चौथे और आठवें घर को भी देखता है, जैसा कि नीचे दर्शाया गया है:
बृहस्पति जिस घर में बैठा होता है, उससे 5वें और 9वें घर को भी देखता है, जैसा कि नीचे दर्शाया गया है:
शनि जिस घर में बैठा होता है, उससे तीसरे और दसवें घर को भी देखता है, जैसा कि नीचे दर्शाया गया है:
राहु और केतु जिस घर में बैठे होते हैं, उससे 5वें और 9वें घर को भी देखते हैं, जैसा कि नीचे दर्शाया गया है:
ग्रहों की उच्च स्थिति और नीच की स्थिति
एक और बात जिस पर हमें विचार करना चाहिए, वह है कुंडली में विभिन्न ग्रहों की उच्च अवस्था और नीच अवस्था।
क्या आप जान सकते हैं कि उपरोक्त कुंडली में कौन से ग्रह किस अवस्था में हैं?
आइए देखते हैं।
- मंगल कर्क राशि में है। कर्क राशि में मंगल नीच अवस्था में होता है।
- सूर्य, शुक्र और बुध सिंह राशि में हैं। सिंह राशि में कोई भी ग्रह उच्च या नीच की स्थिति में नहीं होता है।
- शनि तुला राशि में है। तुला राशि में शनि उच्च अवस्था में होता है।
- चंद्र, बृहस्पति और केतु वृश्चिक राशि में हैं। चंद्रमा वृश्चिक राशि में नीच अवस्था में होता है। जबकि, केतु उच्च अवस्था में होता है यदि यह वृश्चिक में है।
- राहु वृषभ राशि में है। राहु वृषभ में उच्च अवस्था में होता है।
तो, दी गई कुंडली में:
- उच्च ग्रह - शनि, राहु, केतु। (ये ग्रह इस कुंडली के लग्नेश चंद्र के शत्रु ग्रह हैं, लेकिन उच्च अवस्था में होने के कारण ये अच्छे परिणाम देंगे।)
- नीच ग्रह - मंगल, चंद्रमा। (मंगल लग्नेश चंद्रमा का मित्र ग्रह है, लेकिन नीच अवस्था में होने के कारण यह खराब परिणाम देगा, जब तक कि नीच भंग राज योग जैसा कोई असाधारण योग न हो।)
- सामान्य अवस्था में ग्रह - सूर्य, शुक्र, बुध, बृहस्पति।