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वैदिक रश्मि थ्योरी क्या है? (Vedic Rashmi Siddhant kya hai?)

लंबे समय से भौतिकी जिस सबसे बड़ी समस्या का सामना कर रही है, वह है क्लॉसिकल भौतिकी (classical physics) और क्वांटम भौतिकी (quantum physics) के बीच तालमेल का अभाव। आइंस्टीन के सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत (Einstein’s general theory of relativity) और क्वांटम भौतिकी में गुरुत्वाकर्षण की अवधारणा बहुत अलग-अलग है।

यही कारण है कि सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी प्रकृति की 4 मूल शक्तियों - गुरुत्वाकर्षण, विद्युत-चुंबकीय बल, मजबूत परमाणु बल और कमजोर परमाणु बल (gravity, electro-magnetic force, strong nuclear force and weak nuclear force) को एक सिद्धांत में एकजुट नहीं कर पाए हैं - एक ऐसा सिद्धांत जो प्रकृति की सभी चार मूल शक्तियों की प्रकृति, और हमारे ब्रह्मांड में होने वाली सभी घटनाओं की व्याख्या कर सकता हो।

कई सिद्धांतों को आदर्श “एकीकृत सिद्धांत (Unified Theory of Everything)” के रूप में प्रस्तावित किया गया है , जैसे की स्ट्रिंग थ्योरी (String Theory), मूलकण भौतिकी का मानक मॉडल (Standard Model of Particle Physics), आदि। परन्तु, इनमें से कोई भी सिद्धांत पूरी तरह से Unified Theory of Everything की तरह काम करता नहीं दिखता है, कम-से-कम अब तक तो नहीं।

हालाँकि, वेद, जो सनातन धर्म के प्राचीन ग्रंथ हैं, और हिंदुओं (भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले लोगों) द्वारा लिखे गए हैं, उनकी अपनी “यूनिफाइड थ्योरी ऑफ एवरीथिंग (Unified Theory of Everything)” है। यह वर्णन करती है कि ब्रह्मांड कैसे अस्तित्व में आया, और यह कैसे काम करता है।

इस लेख में, हम इस वैदिक “Unified Theory of Everything” पर कुछ प्रकाश डालेंगे, जिसे वैदिक रश्मि सिद्धांत के रूप में जाना जाता है।

यह आचार्य अग्निव्रत (Acharya Agnivrat) द्वारा वेदों पर व्यापक शोध के बाद प्रस्तावित किया गया था।

Table of Contents
  • भौतिक विज्ञानी अब तक क्या जानते हैं?
  • वैदिक रश्मि थ्योरी बनाम स्ट्रिंग थ्योरी

भौतिक विज्ञानी अब तक क्या जानते हैं?

अगर हम रोज़मर्रा की सामग्री को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ते जाएं, तो आप लोगों को क्या लगता है कि हम अंत में क्या पाएंगे?

ठीक यही, वैज्ञानिक एक सदी से भी अधिक समय से कर रहे हैं। पहले हम सोचते थे कि अणु और परमाणु सबसे छोटे संभव भाग हैं। लेकिन बाद में हमें पता चला कि परमाणु स्वयं नाभिक (प्रोटॉन और न्यूट्रॉन) और इलेक्ट्रॉनों से बने होते हैं।

बाद में, हमने कण त्वरक (particle accelerators) में प्रोटॉन और न्यूट्रॉन को भी तोड़ा, और इससे हमें बहुत अधिक मूलकणों जैसे क्वार्क (quarks), और बोसॉन (bosons) आदि के बारे में पता चला। हम इन मूलकणों के बारे में कण भौतिकी के मानक मॉडल (Standard Model of particle physics) नामक एक अलग लेख में और गहरायी से अध्ययन करेंगे।

हालांकि, वैज्ञानिकों को अभी भी कण भौतिकी के मानक मॉडल (Standard Model of particle physics) द्वारा अनुमानित सभी मूलकण नहीं मिले हैं। उनका मानना है कि यदि हम और भी बड़े कण त्वरक (particle accelerator) का निर्माण करते हैं, तो हम परमाणुओं और नाभिक को और भी अधिक ऊर्जा से आपस में टकरा सकते हैं| तब शायद, हम इनमें से कुछ और मूलकणों का पता लगा पाएं। और शायद तब हमें यह पता चले कि ये मूलकण और भी छोटे-छोटे कणों से बने हैं।

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दुनिया का सबसे बड़ा कण त्वरक (particle accelerator) अभी जिनेवा (स्विट्जरलैंड) में लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (Large Hadron Collider - LHC) है।

वैदिक रश्मि थ्योरी बनाम स्ट्रिंग थ्योरी (Vedic Rashmi Theory vs String Theory)

स्ट्रिंग थ्योरी (जो अभी तक सिद्ध नहीं हुई है) के अनुसार, ये मूलकण मूल रूप से अनंत लंबाई के बहुत महीन तारों (स्ट्रिंग्स - strings) के विभिन्न कंपनों से बनते हैं। अतः, अस्तित्व के और भी निचले स्तर पर, क्वार्क (quarks) जैसे मूलकण किसी कण की तरह मौजूद रहने के बजाय, स्ट्रिंग के रूप में मौजूद रहते हैं।

निकोला टेस्ला का एक प्रसिद्ध उद्धरण है: “यदि आप ब्रह्मांड को समझना चाहते हैं तो ऊर्जा, आवृत्ति और स्पंदन के बारे में सोचें। (If you wish to understand the Universe, think of energy, frequency and vibration.)”

वैदिक रश्मि सिद्धांत भी इस स्पंदन अवधारणा का समर्थन करता है। रश्मि का अर्थ है कंपन या स्पंदन करने वाली चीज़ें।

लेकिन वैदिक रश्मि थ्योरी, स्ट्रिंग थ्योरी से बहुत आगे की बात करती है। इसके अनुसार, अस्तित्व के और भी महीन स्तर हैं। जिस माध्यम में स्ट्रिंग्स कंपन करती हैं, वह उन स्ट्रिंग्स से भी महीन होता है।

अस्तित्व के और भी महीन स्तर निम्नलिखित हैं (बड़े से छोटे के क्रम में):

  • आकाश तत्त्व,
  • मानस तत्त्व,
  • अहंकार तत्व,
  • महत तत्त्व,
  • प्रकर्ति तत्त्व

तो, रश्मि सिद्धांत के अनुसार, प्रकृति तत्व किसी भी सामग्री का सबसे महीन रूप है। और हमारे ब्रह्मांड के अस्तित्व में आने से पहले सारा पदार्थ इसी अवस्था में था।

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बिग बैंग थ्योरी के साथ समस्या यह है कि, यह सिद्धांत यह नहीं बता सकता कि बिग बैंग का कारण क्या था, या बिग बैंग से पहले क्या था। हालांकि कुछ वैज्ञानिकों ने प्रस्ताव दिया है कि बिग बैंग से पहले पदार्थ एक बहुत ही महीन सूप के रूप में मौजूद था। यह सुनने में बहुत कुछ प्रकर्ति तत्त्व जैसा लगता है। परन्तु, हम अभी तक इसे अवलोकन, प्रयोग या गणित का उपयोग करके सिद्ध नहीं कर पाए हैं। अतः, ये परिकल्पनाएँ अभी भी सिर्फ सिद्धांतों के दायरे में आती हैं, इन्हें तथ्य नहीं माना जा सकता।

प्रकर्ति अवस्था लगभग शून्य है, अनंत निर्वात स्थान। परन्तु, यह पूर्ण रूप से शून्य नहीं है। पदार्थ की इस अवस्था को पदार्थ की सुषुप्ति अवस्था (Sushupti State of Matter) भी कहा जाता है, अर्थात पदार्थ की सुप्त अवस्था। यह पदार्थ की प्राकृतिक अवस्था है, इसलिए इसे प्रकृति कहते हैं।

भगवान शिव और भारत के अन्य ऋषियों के अनुसार, यह अवस्था अपरिभाषित है, अर्थात अव्यक्त। यह पूरी तरह से ज्ञात नहीं की जा सकती है, क्योंकि इस अवस्था में पदार्थ अपने अधिकांश गुणों को प्रदर्शित नहीं कर रहा होता है। ये गुप्त होते हैं। कोई तर्क या तकनीक हमें इसे समझने में मदद नहीं कर सकती।

जब हमारा ब्रह्माण्ड इस अवस्था में था, तब तापमान पूर्ण शून्य (absolute zero) था, और प्रकाश का भी कोई अस्तित्व नहीं था। कोई द्रव्यमान (mass) और कोई ऊर्जा (energy) नहीं थी। प्रकृति के चार मूलभूत बल (गुरुत्वाकर्षण, विद्युत चुम्बकीय बल, कमजोर परमाणु बल, मजबूत परमाणु बल) जिन्हें हम जानते हैं, वे भी अस्तित्वहीन थे। समय भी वैसा नहीं था जैसा अब है। यह सुप्त था।

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बिग बैंग थ्योरी के अनुसार भी, स्थान/आकाश (space), समय, पदार्थ और ऊर्जा बिग बैंग के बाद ही अस्तित्व में आए, यानी ब्रह्मांड के निर्माण के क्षण के बाद।

रश्मि सिद्धांत के अनुसार, ब्रह्मांड तब अस्तित्व में आया जब एक सर्वोच्च चेतना (अर्थात ईश्वर) ने पदार्थ की इस संतुलित अवस्था को तोड़ दिया, और सबसे पहले कंपन, स्पंदन या रश्मि, जिसे ओम रश्मि (OM Rashmi) कहा जाता है, का कारण बना। यह समय की सक्रिय अवस्था है।

इससे स्पंदन के अन्य रूप भी सामने आने लगे। समय के साथ मूल प्रकृतितत्त्व के गुण सक्रिय होने लगे। पदार्थ विभिन्न रूपों में प्रकट होने लगा।

प्रकृति तत्त्व ने महत तत्त्व, और फिर अहंकार तत्त्व, मानस तत्त्व, और अंत में आकाश तत्त्व में परिवर्तित होना शुरू किया। आकाश तत्व स्थान (space) है।

एक बार जब आकाश तत्व अस्तित्व में आया, तो कई और स्थूल कंपन (छंद रश्मि) शुरू हो गए, जैसे समुद्र की सतह पर लहरें होती हैं। इन सभी रश्मियों में मूल ओम रश्मि निहित है। गुरुत्वाकर्षण भी अस्तित्व में आया।

उसके बाद वायु तत्व अस्तित्व में आया, उसके बाद अग्नि तत्व (यानी बुनियादी प्राथमिक कण, विद्युत चुम्बकीय बल, आदि)।

तब जल तत्व अस्तित्व में आया, यानी पदार्थ की आयनिक अवस्था (ionic state matter) का ब्रह्मांडीय बादल।

उसके बाद पृथ्वी तत्व अस्तित्व में आया, यानी परमाणु और अणु। यानी वे सभी मूल तत्व जो हमें और हमारी दुनिया को बनाते हैं - तारे, ग्रह, आदि को।

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मंत्रों की अवधारणा भी कंपन पर आधारित है। माना जाता है कि विभिन्न मंत्र ब्रह्मांड के विभिन्न प्राकृतिक स्पंदनों के साथ प्रतिध्वनित होते हैं। इसलिए, वैदिक विशेषज्ञों के अनुसार, न केवल सही मंत्रों को कहना आवश्यक है, बल्कि यह भी कि हम उन्हें सही तरीके से कहें।

अब, हम यह नहीं कह रहे हैं कि यह काम करता है या प्रभावी है। लेकिन मंत्रों की पूरी प्रणाली इसी पर आधारित है - अर्थार्थ कंपन की अवधारणा पर। उनमें से सबसे महत्वपूर्ण और सबसे प्रसिद्ध OM का मंत्र है।

इस सिद्धांत के अनुसार, भगवान बहुत ही बुनियादी ओम रश्मि को नियंत्रित करते हैं, जो ब्रह्मांड की सबसे महीन कंपन हैं। बाकी सब कुछ एक श्रृंखला अभिक्रिया (चेन रिएक्शन) के रूप में होता है। यानी हमारा ब्रह्मांड क्वांटम (quantum) दुनिया से नियंत्रित है। हम जो स्थूल संसार देखते हैं, वह सूक्ष्म जगत द्वारा नियंत्रित होता है।

ब्रह्मांड के अंत में, सभी पदार्थ अपनी मूल प्रकृति अवस्था में वापस आ जाएंगे। यानी लगभग शून्य अवस्था। रश्मि सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विनाश एक अनंत चक्र है। ब्रह्मांड बार-बार बनता और नष्ट होता है। इस घटना की कोई शुरुआत नहीं है और न ही कोई अंत है।

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वैदिक रश्मि सिद्धांत हमें सौर मंडल के निर्माण के बारे में भी बताता है। इस सिद्धांत के अनुसार, ग्रहों की अपने तारों के चारों ओर प्रारंभिक कक्षाएँ स्थिर नहीं होती हैं। किसी ग्रह की कक्षा लगभग 60 चक्कर लगाने के बाद ही स्थिर होती है।

उपसंहार

हालांकि न तो रश्मि थ्योरी, और न ही स्ट्रिंग थ्योरी कभी साबित हुई है। यदि पदार्थ की मूल अवस्था, यानी प्रकृति तत्व, अपरिभाषित है तो हम अवलोकन, प्रयोग या गणित (observation, experiments, or Maths) के माध्यम से इसकी वास्तविक प्रकृति को कभी नहीं जान सकते हैं।

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क्या आप जानते हैं कि वैज्ञानिकों और गणितज्ञों ने पाया है कि गणित और अवलोकन (Observations) की एक सीमा होती है।

  • अपूर्णता प्रमेयों (Incompleteness theorems) के माध्यम से, कर्ट गोडेल (Kurt Gödel) ने साबित किया कि प्रचलित गणितीय विधियां प्राकृतिक संख्याओं के बारे में जो कुछ भी सच है उसे खोजने में अपर्याप्त हैं। आप इसके बारे में इस विकिपीडिया पृष्ठ में और भी अधिक पढ़ सकते हैं।

  • क्वांटम भौतिकविदों (Quantum Physicists) ने क्वांटम कणों पर प्रयोग करते समय एक समस्या से सामना किया, जिसे ऑब्जर्वर इफेक्ट (Observer Effect) के रूप में जाना जाता है। कुछ क्वांटम प्रयोगों का परिणाम, इस पर निर्भर करता है कि उनका अवलोकन किया जा रहा है या नहीं। इसने कई भौतिकविदों को क्वांटम पैमाने पर चेतना (consciousness) की भूमिका पर बहस करने और विचार करने के लिए प्रेरित किया है। आप इसके बारे में इस विकिपीडिया पृष्ठ में और भी अधिक पढ़ सकते हैं।

हो सकता है कि हमें परम सत्य की खोज में एक अलग पद्धति अपनाने की आवश्यकता हो। हो सकता है कि हमें ध्यान, कुंडलिनी योग, आदि का उपयोग करके अपने भीतर उत्तर खोजने की आवश्यकता हो। शायद इन प्रश्नों के उत्तर पदार्थ को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर कभी न मिलें।

लेकिन जब तक हम परम सत्य की खोज नहीं कर लेंगे, तब तक यह अटकलों का विषय बना रहेगा। हमें किसी एक पद्धति पर आँख बंद करके विश्वास करने के बजाय, खुले और तर्कसंगत दिमाग से हर संभव रास्ते तलाशने चाहियें।

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